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________________ .. [११०] निपना, पाप भणु करी सातमी नरके उपना ॥ १॥ वीसमे भव थई सिंह चौथी नरके गया, तिहाथी च्यवी संसारे भव बहुला थया । बाबीसमे नरभव लही पुण्यदशा वर्या, त्रेविसमें राज्यधानी मुकामे संचर्या ॥ २ ॥ राय धनंजय धारणी राणीय जनमीया, लाख चोराशी पूरव आयु जीविया । प्रियमित्र नामे चक्रवर्ती दीक्षा लही, कोडीवरस चारित्र दशा पाली सही ॥३॥ महाशुक्र थइ देव इणे भरते चवी, छत्रिका नगरीए जितशत्रु नामे राजवी । भद्रा माय लख पचवीस वरस स्थिति धरी, नंदन नामे पुत्रे दीक्षा आचरी ॥ ४ ॥ अगियार लाखने अंशी हजार छस्से क्ली, उपर पीस्तालीस अधिक पण दिन रुली । वीशस्थानक मासखमणे जावज्जीव साधता, तीर्थकर नामकर्म तिहां निकाचता ॥ ५ ॥ लाख वरस दीक्षा पर्याय ते पालता, छब्बीसमे भव प्राणतकल्पे देवता । सागरवीसनु जीवित सुखभर भोगव, श्रीशुभवीर जिनेश्वर भव सुणजो हवे ॥ ६॥ ०००००००००००cocco ढाल पांचमी ( राग-गजरा मारूजी चाल्या चाकरी रे-ए देशी ) . नयर महाणकुडमां वसेरे, महाऋद्धि ऋषभदत्त नामरे। देवानंदा द्विज श्राविका रे, पेट लीधो प्रभु विसराम रे
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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