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________________ [ १८६] ८ महावीर भगवान का सत्तावीश भवका स्तवन दोहा श्री शुभविजय सुगुरु नमी, नमी पद्मावती माय । भव सत्तावीश वर्णवु, सुणतां समकित थाय ।। १ ॥ समकित पामे जीवने, भव गणती ए गणाय । जो बली संसारे भमे, तो पण मुगते जाय ॥ २ ॥ वीर जिणेसर साहिबों, भमियों काल अनंत । पण समकित पाम्या पछी, अंते थया अरिहंत ॥३॥ ढाल पहली पहले भवे एक गामनो रे, राय नामे नयसार । काष्ट लेवा अटवी गयो रे, भोजन वेला थाय रे प्राणी ! धरीये समकीत रंग, जिम पामीये सुख अभंग रे प्राणी ॥ १ ॥ मन चिंते महिमा नीलोरे, आवं तपसी कोय । दान दई भोजन करे, तो वांच्छित फल होय रे प्राणी० ॥ २ ॥ मारगे देखी मुनिवरा रे, वंदे देई उपयोग । पूछे केम भटको इहारे, मुनि कहे साथ विजोग रे प्राणी० ॥३॥ हरख भरे तेडी गयोरे, पडिलाभ्या मुनिराज । भोजन करी कही चाली एरे, साथ भेलां करूं आज रे प्रागी० ॥ ४ ॥ पगदंडी ए भेलाकर्या रे, कहे मुनि द्रव्य ए मार्ग । संसारे
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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