SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १०१ ] परिकरसु सासरे जावे, अशोक ने राज्ये ठावे । प्रिया पुण्ये वधि बहु ऋद्धि, वितशोक दीक्षा लीधी ॥ ६० ॥ ६ ॥ सुख विलसे पंच प्रकार, आठ पुत्र सुता थई चार । रही दंपत्ति सातमे माले, लघु पुत्र रमाडे खोले ||१०||७|| लोकपालभिधाने बाल, रही गोखे जुए जन चाल । तस सन्मुख रोती नारी, गयो पुत्र मरण संभारी ||१०||८|| शिर छाती कुटे मली केती, माय रोती जलां जली देती । माथाना केश ते रोले, जो रोहिणी कंत ने बोले ||१०|| ९ || आज में नव नाटक दीठु जोता लागे बहु मीठु । नाच शीखी कोहाथी नारी, सुगी रोषे भर्या नृप भारी ॥ १० ॥ कहे नाच सीखो इणि बेला, लेइ पुत्र बाहिर दीए भोला । करथी बिछोडया ते चाल, नृप हाहा करे तत्काल || १० ||११|| पुरदेव वचेथी लेता भुंय सिंहासन करी देता । राणी हसती हसती जुए हेतु, राजाए कौतक दीठु ॥ १०१२ | लोक सघला विस्मय पाने, वासुपूज्य शिष्य वन ठामे । आव्या रूप सोवन कुंभ नाम, शुभवीर करें प्रणाम ||१० १३ ॥ ढाल दूसरी ( राग-चौपाईनी ) चउनाणी नृप प्रणमी पाय, निज राणीने प्रश्न कराय । श्री भवदुःख नवि जाण्या एह, ए उपर हुज अधिको नेह ॥ १ ॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy