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________________ [१२] कवि घटना नव नविकरे, केवल आणी खंत । माता तुज पसाउले, प्रगटे गुण बहु भांत । ३।। माता करु तुज सान्निधे, अष्टमी स्तवन उदार । शत मुखे जीभे को स्तवं, तुज गुण नावे पार ॥४॥ ढाल पहली अष्टमी तिथी भवि पाचरो, स्थिर करी मन वच कायारे । ध्यान धरमर्नु ध्याइए, टालीए दुष्ट अपायरे ।। अ० १॥ पोसह पण धरीए सही, समता गुण आदरीयेरे । राज्य कथादिक वरजीए, गणीजन गुण आचरीएरे ॥१० २॥ पट लेश्या माँहे कही, आर त्रिहुं अप्रशस्तर । वरजो सज्जन दूर ए, धरो निहुँ अन्त प्रशस्तरे ॥अ० ३॥ शल्य त्रिहुं दुरे तजो, वरजो कुमति कुनारीरे । सदगति केरी निवारीका, दुर्गति केरी ए बारीरे ॥१० ४॥ रमीए सुमति नारीसु, करीए दान सहाय रे । मैत्री प्रमोद करूणादिक, धरीए दिल सुखदायरे ॥अ० ५॥ वाचना पृच्छना तिम वली, अनुप्रेक्षा धर्म संगरे । परावर्त्तना पंच भेद ए, करीए धरी मन रंगरे ||अ०६॥ ज्ञानावरणीय दर्शनावरणी, वेदनीय तेमरे। मोह आयु नाम गोत्रए, आठमु अन्तरायरे ॥१० ७॥ ए अष्ट कर्म विनाशिनी, अष्टमी तिथी जिन भाखीरे । आराधनादिकए क्रिया, मानव गति एक साखीरे ।।अ० ८॥
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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