SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [८४] मूरख मोटा हो के, पुत्र थया ज्यारे । न दीये कन्या हो के, कोइ तेहने त्यारे॥ कंत कहे सुण हो के, ए करणी तुमची। वयण न मान्या हो के, ते पहेला अमची ॥५॥ एम वात सुणीने हो के, सुन्दरी क्रोधे चढ़ी । प्रीतम साथे हो के, प्रेमदा अतिहि बढ़ी ।। कंते मारी हो के, तिहां काल करी । ए तुम बेटी हो के, थइ गुण मंजरी ॥६॥ पूर्व भवे एणे हो के, ज्ञान विराधियु । पुस्तक बाली हो के, जे कर्म बांधीयु॥ उदये आव्यु हो के, देहे रोग थयो। वचने मुगी हो के, ए फल तास लह्यो ॥७। ढाल तीसरी निज पूरव भव सांभली, गुण मंजरीए तांहि ललना। जाती स्मरण पामियु, गुरूने कहे उत्साह ललना ।। भविका ज्ञान अभ्यासीये ॥१॥ ज्ञान भलो गुरूजी तणो, गुणमंजरी कहे एम ललना । सेठ पूछे गरूने तिहां, रोग जावे हवे केम ललना ॥ भ० ॥२॥ गुरू कहे हवे विधि सांभलो, जे कह्यो शास्त्र मोझार ललना । कार्तिक सुदी दिन पंचमी, पुस्तक आगल सार ललना ॥ भ० ॥३॥ दीवो पंच दीवेट तणो, कीजिए स्वस्तिक सार ललना । नमो नाणस्स ग़णणु गणो, चोविहार उपवास ललना ॥ भ० ॥४॥ पडिकमणां दोय कीजिए, देववन्दन त्रणकाल ललना । पाँच बरस पाँच
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy