SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ७३] धन ते जिने आपणे लोयणे जिनवर दिठां रे ॥७॥ पुरण पुन्यना औषध, पौषध व्रत वेगे लीधां रे। कार्तिक काली चौदशे, जिन मुखे पच्चखाण कीधां रे ॥ राय अढार प्रमुख घणे, जिन पगे वांदणा दीधा रे। जिन वचनामृत तिहां घणे, भवियणे घट घट पीधां रे ॥८॥ ढाल तीसरी (राग-मारु) श्री जगदीश दयालु दुःख दूर करे रे, कृपा कोडी तुज जोडी । जगमां जगमां रे कही ए केहने चीरजी रे ॥१॥ जग जनने कुण देशे एहवी देशना रे, जाणी निज निरवाण । नवरसरे नवरसरे सोल पहोर, दिये देशना रे ॥२॥ प्रबल पुण्य फल संसूचक सोहामणा रे, अज्झयणां पण पन्न । कहियारे कहियारे महिआं, सुख सांभली होय रे ॥३॥ प्रबल पाप फल अज्झयणां तिम टेटलां रे, अणपुछयां छत्रीस । सुणतारे सुणतांरे भणतां, सविसुख संपजे रे ॥४॥ पुण्यपाल राजा तिहां धर्म कयांतरे रे, कहो प्रभु प्रत्यक्ष देव । मुजनेरे मुजनेरे सुपन अर्थ सवि साचलो रे ॥५॥ गज वानर, खीर, द्रम, वायस, सिंह घडो रे, कमल बीज एम आठ । देखीरे देखीरे सुपन संशय मुज मन हुप्रो रे ॥६॥ उखर बीज कमल अस्थानके सिंहनुरे, जीव रहित शरीर । सोवनरे सोवनरे कुंभ मलिन ए शुघटे रे ॥७॥ वीर भणे
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy