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________________ [७१] गुण रोपीयो नामे चंडकोषीयो, जिन पदे श्वान जिम जेह विलगी । तेहने बुझवी उद्धर्यो जगपत्ति, कीध लो पाप थी अति हे अलगो ।मु० ६॥ वेश्यामां त्रियामं लगे खेदीयो, भेदीयो तुझ नवि ध्यान कुभो । शूलपाणी अन्नाणी अहो बुझव्यो, तुझ कृपा पार पामे न संभो ॥१० ७॥ संगमे पीडियो प्रभु सजल लोयणे, चिंतवे छुटश्ये किम ए हो। तास उपर दया एवडी शी करी, सापराधे जने सबल नेहो ।मु० ८॥ इम उपसर्ग सहेता तरणी मित वरस, सार्ध उपर अधिक पक्ष एके । वीर केवल लघुकर्म दुःख सविदह्य, गह गासुर निकर नर अनेके ।।मु० ९॥ इन्द्रभुति प्रमुख सहस चउदश मुनि, साहुणी सहस छत्रीश विहसी । प्रोगण सठ सहस एक लाख श्रद्धालुपा, श्राविका त्रिलाख अढ़ार सहसी ।मु० १०॥ इम अखिल साधु परिवार शु परवयों, जलधि जंगम जिश्यो गुहिर गाजे । विचरता देश परदेश निय देशना, उपदिशे सयल संदेह भांजे ॥१० ११॥ ढाल दूसरी (राग-भात का डंका देशी) ___ हवे निय प्राय अंतिम समे, जाणीय श्री जिनराज रे । नयरी अपापाये प्रावीयां, राय समाज ने ठाय रे ॥ हस्ती पालग राये दिठला, आवीयड़ा अंगण बार रे। नयण कमल दोय विहसीयां, हरसीला हैइडा मझार रे ॥१॥ भले भले
SR No.032213
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Sazzay Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShiv Tilak Manohar Gunmala
PublisherShiv Tilak Manohar Gunmala
Publication Year1964
Total Pages208
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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