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________________ ( २ ) शेष सब श्रीरँगसूरिजी नन्दीवर्द्धनसरिजी व कल्याणसरि जी कृत स्तवन दोहे हैं। इतिहास के बारे में मैं इतना ही लिख देना चाहता हूँ कि बहुतसी सामग्री मुझे मिल चुकी है आदि से लेकर अन्त तक जब मेरे पास एकत्रित होजावेगी, उस समय आपके सम्मुख जो २ कार्य किये हैं और वे किस प्राचार विचार से चलते थे, जैन समाज में क्या उज्वल उदाहरण रखके गये थे, इन सब का विवरण सविस्तार रखने का साहस करूंगा। ___ इस पुस्तक के छपवाने का सारा श्रेय उमराव सिंह जी दूंगरिया ( देहली) निवासी को है । क्यों कि उनके पिता का दान फण्ड था, उसको अच्छे कार्य में लगाने के लिये मुझसे कहा। मैंने भी अपना आशय इस पुस्तक के छपवाने का प्रगट किया। तब उन्होंने अपने पिता जी के दान फण्ड में से देना स्वीकार कर अपनी उदारता का परिचय दिया। इस पुस्तक के प्रारम्भ में ही आप लोग आपके पिताश्रीके फोटू का अवलोकन करेंगे,उनके पुत्र रत्न उमरावसिंह जी दौलतचन्द जी सहृदय न्यायप्रिय व समाजप्रेमी हैं। अतः समाजके नवयुवकों को इनका अनुकरण करना चाहिये । इस पुस्तकके प्रूफसंशोधन में यदि कोई त्रुटि रही हो तो पाठकगण मुझे क्षमा प्रदान करेंगे । अक्षय तृतीया देहली लेखकयति रामपाल । ।
SR No.032212
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRampal Yati
PublisherUmravsinh Dungariya
Publication Year1933
Total Pages36
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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