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________________ ( १६ ) ॥ दादा जी का स्तवन ॥ तुम पूजो श्री जिन कुशल सरि, गुरुनामें सङ्कट जायें दूरि ॥ पू० १॥ पूनम पूनम ने सोमवार, दरसन देखी जे बार बार ॥ पू० २॥ छाजेहड़ बंसे जग विख्यात, जिल्हागर कहिये तसु तात ॥ पू० ३॥ जैतसिरि माता तणोरे नन्द, गुरू चन्द कुलंबर चन्द ॥ ४ ॥ प्रभु चरण कमल जिम भमर प्रीति, जिन रङ्ग कहे कर जोडि ॥ पू० ५ ॥ इति । ॥ दादा गुरु स्तवन ॥ छत्रपति थांरे गंय नमैं जी सुर नर सारे सेव । ज्योति थारी जग जागती जी दुनिया में परतिख देव ॥१॥ हुँ तो मोहि रहयो जी द्वारा राज दादै रे दरबार ॥ हुँ ॥ केशर अँवर केवडो जी कस्तूरी करपूर । चपो चन्दन राय चमेली भक्ति करूँ भर पूर ॥ २॥ पांगुलियाने पांव समापे जी आंधलियाने आंख । रूप हीणाने रूप देवे दादो पँख हीणाने पांख ॥ हु ३॥ चन्द पाटेाधर साहिबोजी श्री जिन कुशल सूरिंद ॥ अष्ट प्रहर थाने ओलखूजी रङ्ग घणे राजिंद ॥ हु॥ ४॥ इति ॥ ॥ दादा गुरु स्तवन ॥ कुशल गुरू कुशल करो भरपूर । सेवक जन मन वॅछित पूरण समया होत हजूर ॥ कुशल ॥ १॥ परम दयाल प्रेम
SR No.032212
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRampal Yati
PublisherUmravsinh Dungariya
Publication Year1933
Total Pages36
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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