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________________ ( ११ ) ॥ पार्श्व जिन स्तवन ॥ सांभल हो साहिब माहराजी एक करूँ अरदास । पुण्य अकूर हिव जागियो जी श्रावीयो पास जी पास । सां० । १। हिवस्यु हिवे वात कहूँ जेहनी जी, जेह जाणे नहीं धात । अन्तरजामी श्रापणू जी, जिन कहूँ मन तणी बात । २ । सां० । देहरे २ देवता जी, कोन थी ताहरी जोड़। काचते मोल महँगो घणो जी, कुण करे पाचनी होड । ३ । सां० । अवगुण एक लाभे नहीं जी, गुण घणां ताहरी देह । पर उपकार सहजे करोजी, उत्तम नर अनमेह । ४ । सां० । अलख अगोचर तूं सही जी, सकल तू अकल सरूप । कुण संसार में एहबोजी जे लिखे ताहरो रूप ' ५। सां० । देव बिना नी चाकरी जी जेहवी निगुणनी बांह । तुझ सेवा साता भणी जी, जिम सुरतरुनी छांह । ६ । सां० । कास रस मन गमे जां लही जी, तांलग नवि जुडे ईख । जाण नर जापि विष कुण पिये जी, जल्दी ही को पिये ईख । ७ । सां० । ताहरा दरसण बिना जी, हूँ भम्यो सकल संसार । पाठ करमाने बस पडयो जी ऊँचने नीच अवतार । ८ । सां० । जाण अजाण पणे कयी जी, आज लग आचरया पाप भक्त निज जाणि बगसिये जी, ज्यु टले सकल संताप । ६ । सां० । नहीं कठिन करणी करी जी, किम होसी छूटकार । पिण धणी सबल तो सारिखोजी, एकलो एह
SR No.032212
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRampal Yati
PublisherUmravsinh Dungariya
Publication Year1933
Total Pages36
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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