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________________ सीस ॥ ८॥ जि० ॥ गौड़ीपारसनाथसेंजी लाग्यो मो मन रंग ॥ श्रीजिनराज पसाउले जी जम्पे श्रीजिन रंग ॥६॥ जि० ॥ इति । राग वेलाउल। .. जब श्रादीश्वर सेविये तब सब बन पावै । सुख संपति आनन्द घणां, घर बैठा ही पावे ॥१॥ जि० ॥ स्नात्र महोत्सव सासता पंच शब्द बजावे । केसर चन्दन कुमकुमा घसि अङ्ग लगावे ॥२॥ ज०॥ चम्पा मरुश्रा केतकी, जाई जूई बणावे । पाइल दमणो केवडो, गुथि माल चढ़ावे ।। ३॥ ज० ॥ चोवा मृगमद अरगजा परिमल महकावे । प्रभु श्रागल करे भारती भले चमर दुलावे ॥४॥ ज० ॥ श्री जिनराज सदा जयो मंगल बहु गावे । रंग सूरि गुणगावतां सब जीव सुहावे ॥५ । ज० ॥ इति । पार्श्व जिन स्तवन ॥ राग सामेरी। भविक जन ते धन जे जिन पूजे। पास जिणेसर नयणे निरख्या चित्त न लागत दूजे ॥१॥ भघि० ॥ परमानन्द उपजत प्रभु नामें जैसे साकर दूंजे। पद पङ्कज जे सेवक सेवे तिणथी पातक धूजे ॥२॥ भवि०॥ अविचल लाछि हुवह घर ागण साहिब होय पूँजे । रंग सूरि प्रभु चरण सरण करि चाहत मुक्ति वधूजे ॥३॥
SR No.032212
Book TitlePrachin Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRampal Yati
PublisherUmravsinh Dungariya
Publication Year1933
Total Pages36
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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