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________________ [१७ ] (१) तारु ध्यान धरे मस्तान मने, मारु दिल चहे रहुं तुज कने . सेर . संसारना जे मूल रुपे, तें कषायो केलव्या, दुःखना जे डुंगरो ते, पापथी में मेलव्या, हूँ रखडी रहयो छ भवरुप वने, तारु ध्यान ॥ १ ॥ सेर - मारा जेवा दुर्मागीने, तारा विना शरयूँ नहि जिनराजनुं ए राज छोड़ी कयां बीजे रहेQजई ? रोको कर्म प्रभु जे मने नित्य हगे तारु ध्यान ॥२॥ । सेर नारकी थई में कदी हा, घोर दुःखो छे सहयां बे अन्त दुःख निगोदना, प्रभु में वह लहयां, आपो राह जीवन सुखकार बने तारु ध्यान ॥ ३ ॥ सेर देवलोके दुःखीयो, दुःखी पशु जीवन बरी, मानव जीवन पण दुःखमां विण धर्म हा एले करी मने दीनने जोड़ो जिन धन धने घने तारु ध्यान ॥ ४ ॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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