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________________ [ ४६ ] निज रुपने भूली करी, पररुपमां रमवा पणुं मारु निवारी नाथ, निजना रुपमां मने ढालजो || शांति० ॥३॥ सत्य संयम शील सद्गुण, आत्म धन मारु प्रभु मोह तस्कर हरण करवा, आवताने खालजो ॥शांति० ॥४॥ आत्म ज्योति शुध्ध मारी, शाश्वती प्रगटाववा लीधुं तमारु शरण कस्तुर, विश्ववत्सल भालजी || शांति ०||५|| ( १४ ) ( तुम चिद्घन चंद आनन्द लाल, एदेशी ) तुम आदि जिनंद मारुदेवानंद । अब शरण लही प्रभु थारी || आंकणी ॥ प्रथम नरेश्वर प्रथम जिनेश्वर, प्रथम भये उपगारी मोरा० ||०||१|| लोक धरम मरजादाकारी । जुगलां धरम निवारी मोरा० ॥ २ ॥ संजमवारी वरस बिनआहारी । विचर्या ऊग्र विहारी ॥ मोरा० ॥ ३ ॥ परिषह कोजकुं वेग विहारी । ज्ञान खडग कर धारी ॥ मोरा० ॥ ० ॥ ४ ॥ शुद्ध उपयोगी अद्भुत जोगी । विषय वासना वारी ॥ मोरा ॥ तु० || ५|| अष्टापदपे आसन धारी । वरिया शिव नारी ॥ मोरा० ॥ ० ॥ ६ ॥ प्रभु की महिमा मुखसें कहिवा जिभडली गई हारी || मोरा ॥ तु० ॥ ७ ॥ बीकानेर में आदि जिनंद की मूरति मोहन गारी ॥ मोरा ॥ तु० ॥ ८ ॥ वीर विजय कहे प्रभुजी भेटी । दुरगति दुःख निवारी || मोरा ॥ तु० ॥ ६ ॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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