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________________ स्तवन विभाग (१) आदिजीन स्तवन भरतजी कहे सुणो मावड़ी, प्रगटयां नव निधान रे; नित नित देतां ओलंभड़ा, हवे जुओ पुत्रना मान रे, ऋषभनी शोभा हुशी कहु ? ॥१॥ अढार कोडाकोड सागरे, वसीयो नयर अनुप रे; चार जोयणनु मान छे, चालो जोवाने चुप रे ।। ऋषभ० ॥२॥ पहेलो रुपानो कोट छ, कांगरा कंचन वान रे, बीजो कनकनो कोट छे; कांगरा रत्न समान रे ॥ ऋषभ• ॥ ३॥ श्रीजो रतननो कोट छे, कांगरा मणिमय जाण रे, तेमां मध्य सिंहासने, हुकम करे प्रमाण रे ॥ऋषभ, ॥४॥ पूरव दिशानी संख्या सुणो, पगथियां वीश हजार रे, एणी परे गणतां चारे दिशा, पगथियां अॅसी हजार रे ॥ ऋषभ० ॥ ५॥ शिरपर त्रण छत्र जलहले तेहथी त्रिभुवन राय रे, त्रण भुवननो रे बादशाह, केवलज्ञान सोहाय रे ॥ ऋषम० ॥ ६ ॥ वीश बत्रीश दश सुरपति, वली दोय चंद्र ने सूर्य रे, दोय कर जोड़ी उभा खड़ा तुम सुत ऋषम हजूर रे ॥ ऋषम ॥ ७ ॥ चामर जोड़ी चौ दिश छे, भामंडल झलकंत रे, गाजे गगने रे दुंदुभि, फूल पगरव संतरे ॥ ऋषम० ॥ ८॥ बार गुणो प्रभू देह थी, अशोक वृक्ष श्रीकार रे; मेव समाणी दे देशना, अमृतवाणी जयकार रे ॥ ऋषभ
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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