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________________ ( २६ ) , जल भरी संपुट पात्रमां युगलिक नर पूजंत । ऋषभ चरण अंगूठड़, दायक भव जल अन्त ॥ १ ॥ दोनों पांव के अंगूठों का पूजन विचरया देश विदेश । पूजो जानु नरेश ||२|| दोनों गोंड़ों का पूजन || जानुं बलेका-उस्सग्ग रह्या, खड़ा खड़ा केवल लह्या, लोकांतिक वचनें करी, करकान्डे प्रभू पूजना, बरस्या वरसी दान । पूजो भवि बहुमांन ॥ ३ ॥ हाथों का पूजन वीर्य अनन्त । खंघ महन्त ॥४॥ कन्धों का सिद्ध शिला गुण ऊजली, लोंकांतिक भगवन्त । बसिया तिण कारण सही, सिद्ध शिखा पूजन्त ॥ ॥ शिखा का तीर्थकर पद पुण्य थी, त्रिभुवन जन सेवंत । त्रिभुवन तिलक समा प्रभू, भाल तिलक जयवंत ||८|| ललाट का मांन गयुंदोय अंशथी, देखो भुजाबले भवजल तरया, पूजो पूजन ॥ पूजन । पूजन । सोल पहर दई देशना, कंठ विवर वरतूल । मधुर धुनी सुरनर सुर्णे, तिमगले तिलक अमूल ||७|| कण्ठों का पूजन
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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