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________________ १२ ) वस्तु सयल जिनवर सयल जिनवर नमिय मनरंग । कल्लाणक विह संथविय । करिय सुजम्म सुपवित्त सुन्दर । सय इक सत्तरि तित्थंकर। इक्क समैं विहरंत महियल। चवण समें इक-वीस जिण ! जन्म समें इकवीस। भत्तिय भावै पूजिया । करो संघ सुजगीस ॥१॥ (इकदिन अचिरा हुलरावती-ए देशी। ) भवतीजे समकित गुण रम्या, जिन भक्ति प्रमुख गुण परिणम्या। तजि इन्द्रिय सुख आसंसना, करि थानक वीसनी सेवना । अतिराग प्रशस्त, प्रभावता, मन भावना एहबी भावता। सवि जीव करूं शासन रसी, इसी भाव दया मन उल्लसी। लहि. परिणाम एहबं भलं, निपजावी जिन पद निरमलुं । आऊबन्ध विचै इक भव करि, श्रद्धा संवेगथी थिर घरी। तिहांत्थी चविय हैं नर भव उदार, भरते जिम ऐरवतेज सार । महा विदेह विजय प्रधान, मझ खंड अवतरे जिन निधान । ढाल पुण्ये सुपना ए देखें, मन में हर्ष विशेष । गजवर उज्जवल सुन्दर, निर्मल वृषभ मनोहर । निर्भय केसरी सिंह लखमी अतिह अबीह । अनुपल फूलनी माला, निर्मल शशि सुकमाल । तेज तरण अति दीप, इन्द्र ध्वजा जग जीपै ।
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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