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________________ भावना सरसशांति सुधारससागरं शुचितरं गुणरत्न महागरं, भविक पंकज बोध दिवाकरं प्रतिदिनं प्रणमामि जिनेश्वरं -- हे प्रभु आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजीये शीघ्र सारे दुर्गणों को दूर हमसे कीजीये लीजीये हमको शरणमें हम सदाचारी बने ब्रह्मचारी धर्म रक्षक वीर व्रत धारी बने भगवान हमारी लाज रखना आपही के हाथ है कर कृपा अति शीघ्र हमको शुद्ध बुद्धि दीजीए हे प्रभु आनन्द दांता ज्ञान हमको दीजीए भक्ता भरप्रणत मौलिमणि प्रभाणा, मुद्योतकं दलितपापतमो वितानाम सभ्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादा, वालम्बनं भवजले पततां जनानाम यः संस्तुतः सकलवाअंगमयतत्ववोधा, दुद्भूत बुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः स्तोत्रैर्जगत्रितय चित्तहरे रूदारैः स्तोष्यै किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित ! बुद्धिबोधात् स्वं शङ्करोऽ
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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