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________________ [ १२४ ] रोमांचियो रे लोल ॥ ३ ॥ हॉ० वाया वास सुवास तिहां अवलंबजो, पासे रे परिमल चिहुं पासे, संचियो रे लोल, हां० देव चतुर्विध आवे कोडांकोड जो, त्रिगडुंरे मणि हेम रतन- ते रचे रे लोल ॥ हां चोसठ सुरपति सेवे होडाहोड जो, आगे रे रस लागे इंद्राणी नचे रे लोल ॥ ४ ॥ हां० मणिमय हेम सिंहासन बेठा आपजो, ढाले रे सुर चामर मणि रत्ने जड़यां रे लोल ॥ हां० सुणतां दु'दुभि नाद टले सवि ताप जो, वरसे रे सुर फुल सरस जानु अडयां रे लोल ॥ ५ ॥ हां० नाजे तेजे गाजे धन जेम लुबजो, राजे रे जिनराज समाजे धर्मने रे लोल, हां निरखी हरखी आवे जन मन लुंबजो, पोषे रे रस न पडे घोखे भर्मने रे लोल ॥ ६॥ हां० आगम जाणी जिननो श्रेणीक राय जो आव्यो रे परिवरियो हय गय रथ पायगे रे लोल ॥ हां देई प्रद'क्षिणा वंदी बेठो ठाय जो, सुणवारे जिनवाणी मोटे भायगेरे लोल ॥ ७ ॥ हां० त्रिभुवन नायक लायक तव भगवंत जो, आणी रे जन करुणा धर्म कथा कहे रे लोल, हां सहज विरोध विसारी जगना जंतु जो, सुणवारे जीनवाणी मनमा गहगहे रे लोल ॥८॥ श्री एकादशी का स्तवन जगपति नायक नेमि जिनंद, द्वारीका नयरी समोसर्या ॥ जगपति वांदवा कृष्ण नरिंद यादव कांडशु परिवर्या ॥ १ ॥ जगपति धीगुण फूल अमूल, भक्ति गुणे माला रची ।। जगपति पूजी पुछे कृष्ण, क्षायिक समकित शिवरुचि ॥ २॥ जगपति चारित्र धर्म अशक्त रक्त आरंभ परिग्रहे ॥ जगपति भुज आतम उद्धार, कारण तुम विण कोण कहे ॥ ३ ॥ जगपति तुम सरीखो भुज नाथ, भाथे गाजे गुण
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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