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________________ [ १२० ] मतलब की ये दुनिया दारी सुकरीत बिन भवि भरम भुलाना ॥३॥ हेम शशी दिनकर प्रभु जी के रात दिवस करते गुण गाना ॥४॥ अवधू क्या सोवे तन मठ में, जाग विलोकन घट में तन मठ की परतीस न कीजे, ढहि परे एक पल में हलचल मेरी खबर ले घट की चिन्हे रमता जल में मठ में पंच मूत का बासा, सासा धूत खवीसा छिन छिन तो ही छलन कू चाहे समझे न बोरा सीसा शिर पर पंच परमेश्वर, घट में सूक्ष्म बारी माय अभ्यास लखे कोई विरला, निरखे धूको तारी आशा मारी आसन घर घट में, अजपा जाप जपावे आनन्द धन चेतन मय मूरती, नाथ निरंजन पावे (१८) जगत रुठीने शुं करशे मारो नवकार बेली छे हजारो मंत्र शुं करशे मारो नवकार बेली छे मुर्दशन शेठनी उपर चढायुं आण राणी चढाव्या शूलीओ ज्यारे चढया नवकार ने ध्याने थयुं शुली, सिंहासन...मारो०
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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