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________________ [ ११८ ] ( १२ ) जिनवर नावरिया, नैया पार लगा दे रे जीना दो दिन का, भक्ति रंग लगा दे रे ॥ जिनवर ।। दुखी है दुनिया दुःख खजाना, कहीं है हँसना, कहीं है रोना । रहा झमेला जमाया रे ॥ जिनवर ॥१॥ मिलने वालों मिलो प्रभु से, पार लगादे प्रभु भव जल से । जैसे नाविक नैया रे ॥ जिनवर ॥२॥ जग माया के पास फसाना, कोई मुआना कोई लुभाना । जीवन यूं ही गमाया रे ॥ जिनवर ॥३॥ यह संसार मुसाफिर खाना, फिर-फिर आना, फिर-फिर जाना। भक्ति सरिता बहाय रे॥ जिनवर ॥४॥ कर्म पीजर में नहीं फंसाना, आत्म कमल में लब्धि बसाना। मुक्ति नगर मिल जाये रे ॥ जिनवर ॥५॥ प्रमुजी पटा लिखा दो मेरा, मैं सच्चा नौकर तेरा। प्रभुजी पटा लिखा दो मेरा, मैं दिन भर नौकर तेरा॥ प्रभुजी पटा लिखा दो मेरा, मैं हुकमी चाकर तेरा । दवात मंगाय देऊ, कलम मंगावी देऊ, पाना मंगावी देऊ कोरा । मुगतिपुरी की जागीर लीखाई दो, मस्तक मुजरा मेरा ॥प्रभुजी॥ ज्ञान ध्यान का महल बनाया, दरवाजे रखू पेरा। सुमति सिपाई नोकर राखो, चोर न पावे घेरा ॥प्रभुजी।। पंच हथियार जतन करी राखो, मनमां राखो धीरा। क्षमा खड़ग लइ पार उतर जो, जब तब मुजरा मेरा प्रभुजी॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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