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________________ [ ११२ ] भले वल्लभ चीन गुणमंजरी वरदत्त परे रे, ज्ञान विराधन बीन रे ॥म. ॥१॥प्रेमे पुछे परषदा रे प्रणमी जगगुरु पाय, गुणमंजरी वरदतनो रे, करो अधिकार पसायो रे ॥ भ० ॥ १० ॥ नवपदजी स्तवन अपो सब सार मंत्र नवकार ध्यान से उतरोगे भव पार। मैना सुन्दरी श्रीपाल को नवपद का आधार, मन का मनोरथ हुआ पूरा मीट गया कष्ट विकार ॥ जपो० ॥ सेठ सुदर्शन शुली ऊपर जपे जाप नवकार, शुली बनकर हुआ सिंहासन महिमा सिद्ध अपार ॥ जपो० ॥ जलतो नाग अग्नी से काड्यो दियो पारश्व नवकार, धरणीधर की पदवी पाई भुवन पति शिरताज ॥जपो०॥ बहुत प्रतापी महा मन्त्र है, चौदह पुरब सार, लाल कहे मवी भावे भजिये करते जय जयकार ॥जपो०॥ सामान्य जिन स्तवन आज मारा प्रभुजी सामु जुओ सेवक कहीने वोलावो रे अटले हुँ मनगमतुपाम्यो रुठडां बाल मनावो मारा सांइरे आज० ॥१॥ पतितपावन शरणागत वत्सल, ओ जश जगमां दावो रे, मनरे मनाव्या विण शिव नहीं मुकु अहोज मारो दावो रे आज० ॥२॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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