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________________ [ १.८ महावीर नाम देवनाथे त्यां दी), पंडित विस्मय पाम्या ॥ ५ ॥ चारित्र लई प्रभु कर्मो हटाई, केवल ज्ञान प्रगटाया ॥ ६ ॥ हिंसा मृषा चोरी मैथुन वारी, परिग्रह बुरा बताया ॥७॥ आत्म कमला शैलीसी साधी, शिव लब्धि उपाया ॥ ८ ॥ (१३) महावीर स्वामी आप बिराजो चन्दन चौक में दूर देश से शिखर दीखे, शिखर की छवि न्यारी हाथी घोडा रथ पालखी, मन में बहुत हुसियारीजी ॥१॥ दूर देश से आये यात्री, पूजा आन रचावे अष्ट द्रव्य पूजा में लावे, मन वंछित फल पावे ॥२॥ थारो सेवक अरज करे छे, सुणज्यो महावीर स्वामी मो पे किरपा ऐसी कीजे, जावे मोक्ष निसानीजी ॥ ३ ॥ (२२) श्री नेमनाथ जिन स्तवन परमातम पूरणकला, पूरणगुण हो पूरण जन आश; पूरण द्रष्टी निहालीए, चित्त घरीए हो अमची अरदास, परमा०॥२॥ सर्व देश घाती सहु अघाती हो करी बात दयाल ! वास कियो शिव मंदिरे, मोहे विसरी हो भमतो जगजाल ॥२॥ . जगतारक पदवी लहो, तर्या सहि हो अपराधि अपार; तात ! कहो मोहे तारतां, किम कीनी हो इण अवसर वार ॥३।। मोह महामद छाकथी, हुँ छकियो हो नवि सूध लगार; उचित सहि इण अवसरे, सेवकनी हो करवी संभाल |
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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