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________________ [ १०५ 1 सिद्धारथ राप कुल तिलोए, निशला ममत मल्हार तो; अवनी तले तमे अवत्तर्या , करवा अम उपगार जयो जिन वीरजी ऐ॥१॥ में अपराध कर्या घणा ए, कहेतां न लहुं पार तो; तुम चरणे आव्या भणीए, जो तारे तो तार; जयो० ॥२॥ आश करीने आकीयो ए, तुम चरणे महाराज तो, आव्याने उवेखशो ए, तो केम रहेशे लाज ॥ जयो० ॥३॥ करम अलुंजण आकरां ए; जन्म मरण जंजाल तो; हुँ छु अहेथी उभग्यो ए, छोडाव देव दयाल ; ॥जयो०॥ ॥४॥ आज मनोरथ मुज फल्यां ए, नाठां दुःख दंदोल तो; तुठयो जिन चोवीसमो ए, प्रगट्यां पुन्य कल्लोल; ॥ जयो० ॥ ५॥ भवे भवे विनय तुमारडो ए, भाव भक्ति तुम पाथ तो; देव दया करी दीजिए ए, बोधि बीज सुपसाय; । जयो० ॥६॥ (६) नारे प्रमु नहि मानु, नहि मान अवरनी आण; नारे. मारे ताहरु वचनः प्रमाण; नारे. हरिहरादिक देव अनेरा, ते दोठा जगमांहि रे, भामिनी भ्रमर भृकुटिए भूल्या, ते मुजने न सुहाय नारे ॥१॥ केईक रागीने केईक द्वषो केईक लोभी देव रे; केईक मदमायाना भरीया, केम करीए तस सेव नारे ॥२॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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