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________________ [ १३ ] देखी श्री पार्वतणी मुरति अलबेलडी, उज्ज्वल भयो अवतार रे, मोक्षगामी भव थी उगार जो । सीवगामी भव थी उगार जो ॥ टेर ॥ मस्तके मुगट सोहे काने कुंडलिया, गले मोतीयन को हार रे ॥मोक्षा पगले-पगले तारा गुणों संभारा,नंतरना विसरे उपाट रे ॥२॥मोक्ष भापना दरिशने आत्मा जगाड़यो ज्ञान दीपक प्रगटाय रे ॥३॥ मोक्ष मात्मा अनंत प्रभु आपे उगारीया, तारो चंदु ने भव पार रे॥४॥मोक्ष महो ! अहो ! पासजी ! मुज मलियारे, मारा मनना मनोरथ फलिया-अहो तारी मूरति मोहनगारी रे, सहु संघने लागे प्यारी रे तमने मोही रहया सुर नर नारी-अहो० ॥१॥ मलबेली मूरत प्रभु ! तारी रे, तारा मुखडा उपर जाउं वारी रे, नागनागणीनी जोड उगारी-अहो० ॥२॥ धन्य धन्य देवाधिदेवारे, सुरलोक करे तारी सेवा रे; अमने आपो शिवपुर मेवा- अहो ॥ ३ ॥ तमे शिवरमणीना रसीयारे, जइ मुक्तिपुरोमां वसीया रे, तमे शिवरमणीना रसीया रे, जइ मुक्तिपुरीमा वसीया रे, मारा हृदयकमलमांहे वसिया–अहो० ॥४॥ जे कोइ पार्श्वतणा गुण गाशे रे, भवभवना पातक जाशे रे। तेना समकित निरमल श्राशे--अहो० ॥५॥ . सवा रा
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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