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________________ [ ८१ ] वाधे नेह नजरे निहालतां रे, बमणो वान अखूट खजानो प्रभु ताहरो रे, दीजीए वांछित दान ॥४॥ आश करे जे कोई आपणी रे, नवि मूकीए निराश; सेवक जाणीने आपणो रे, दीजीए तास विलास ॥५॥ दायकने देतां थकां रे क्षण नवि लागे वार; काज सरे निज दासनां रे, ए म्होटो उपकार ||६|| एवँ जाणीने जगधणी रे, दिल मांही घरजो प्यार; रुपविजय कविरायनो रे, मोहन जय जयकार ॥७॥ ( ६ ) श्री शान्तिनाथ महाराज अरज सुन मेरी तुम रखो हमारी लाज शरण गत तोरी। श्री शान्तिनाथ० दरसण कि लग रहि आश कच्छु न सुहावे दिन रेन पड़त नहि चैन नीन्द नहिं आवे । श्री शान्तिनाथ एक पाटणपुर, श्री जग मे नाम कहबावे, श्री शान्तिनाथजी को ध्यान, अमर पद पावे । श्री शान्तिनाथ • गावे, एक गौरीलाल, लख चौरासी मे फेर, कबहू नहिं आवे । श्री शान्तिनाथ • ७ ) चंपालाल गुण सुत शांति तेरे लोचन हे अनियारे कमल ज्युं सुन्दर मीन ज्यु ं चंचल मधुकर थी अतिकारे ॥ १ ॥ जाकी मनोहरता जित वनमें कीरते हरिन - बिचारे ॥२॥
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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