SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ७६ ] म्हारो मुजरो ल्योने राज, साहिब शांति सलूणा; अचिराजीना नंदन तोरे, दर्शन हेते आव्यो; समकित रोझ करोने स्वामी, भकती भेटणुं लाव्यो ॥ म्हारो० ॥१॥ दुःख भंजन छे बिरुद तमारु, अमने आशा तुमारी; तुमे निरागी थइने छूटो, शी गति होशे अमारी ॥म्हारो० ॥२॥ कहेशे लोक न ताणी कहेवु, अवईं स्वामी आगे; पण बालक जो बोली न जाणे, तो केम व्हालो लागे ॥म्हारो० ॥३॥ म्हारे तो तुं समरथ साहिब, तो किम ओछं मानु, चिंतामणि जेणे गांठे बांध्यु, तेहने काम किश्यानुं ॥म्हारो०॥४॥ अध्य तम रवि उग्यो मुज घट; मोह तिमिर हयुं जुगते; विमल विजय वाचकनो सेवक, राम कहे शुभ भगते ॥म्हारो०॥५॥ (३) सुण दयानिधि ! तुज पद पंकज मुज मन मधुकर लीनो, तु तो रात दिवस रहे सुख भीनो ।सुण०॥१॥ प्रमु अचिरामातानो जायो, विश्वसेन उत्तम कुल आयो; एक भवमां दोय पदवी पायो ।सुण. ॥१॥ प्रभु चक्री जिनपदनो भोगी, शांति नाम थकी थाय निरोगी; तुज सम अवर नहीं दूजो योगी ॥सुण०॥२॥ षट खंडतणो प्रभु तुं त्यागी, निज आतम ऋद्धि तणो रागी; तुज सम अवर नहीं वैरागी ॥सुण०॥३॥ वडवीर थया संजमधारी, लहे केवल दुग कमला; सारी; तुज सम अवर नहीं उपकारी ॥सुण०॥४॥ प्रभु मेघरथ भव गुण खाणी, पारेवा उपर करुणा आणी; निज शरणे राख्यो सुख खाणी सुण०॥५॥ प्रभु कर्म कटक भव भय टाली, निज आतम गणने
SR No.032198
Book TitlePrachin Stavan Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivya Darshan Prakashan
PublisherDivya Darshan Prakashan
Publication Year
Total Pages166
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy