SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० दिविर घत्ता - इय सावयवय पालेवि णरु सग्गहो गच्छइ । चलहारमणिओ रमणिओ रमंतुं चिरु अच्छइ ||८|| ह तत्तो चइवि सुरवरो' हवइ णरवरो भुंजिऊण सोक्ख । पुणु तवजलतत्तओ कम्मचत्तओ लहइ परममोक्खं ॥ णिसिअसणे वयइँ ण सोह दितिं उवयरियइँ खलयणे किं करंति । णिसिभोयणवज्जणु तह वएसु । गडरियवा हे जण चलति । अच्छंति मूढ णउ शियमु लेवि । जइ उ मुअंति तुंगीहि असणु । अगम्म भोयणु गिलंति । अहिगरलु वि दरिसिय पलयकालु । दुप्पेच्छ रोय तो संभवति । ते असणम अवसिं पडंति । इय पयउ दोससय तहिँ हवंति । ६ सारउ जिह मंदरु पव्वएसु उ जुत्ताजुत्तर मणे कलंति रविविहुरे जान भुंजंति तो वि पसुवहँ पुमाएँ अंतरुवि कवणु सम भूअ रक्खस मिलंति दीसण किंपि मलु रेणु वालु घिरिहोलँपमुह जइ पइसयंति जे हुम जीव अवर वि अडंति हियण अंध दरमलेवि खंत धत्ता - एहउ बुज्झिवि वरि हालाहलु विसु खज्जइ । सीलु विवज्जेवि उरणिहि भोयणु किज्जइ ॥६॥ १० हा हा लोड मूढउ पावे छूढ मुणइ उ हियत्तं । तणु सहसत्ति खिज्जए किं मरिज्जए रयणि जइ' ण भुत्तं ॥ आरणालं ॥ सहउ सिंहितावणं २. लियाले जाउ कणख देह मलं मह सुहभावणं । पड भइरवतले । गंगाजले । धर सिरि गुग्गुलं । [ ६.८.१३ ε. १ क सुरवरहो । २ क णरसोक्खं । ५ ग घ पयसवंति । ६ क ग घ एविणु । १०. १ ख णिसिहि जं । २. क उडउ । ३ क ग घ खाणें । ४ क घिरिहोलि । १० ५
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy