SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४. १५, ४] - सुदंसणचरिउ घत्ता-विस झस दाम सिल द्धय पोम गिरि गोउर वामन करें। जा उव्वहइ सा सुहु लहइ चिरु अहिणंदइ णियघर ।।१३।। १४ उद्धरेह चक्कुसकुंडलराइया अद्धइंदुभालंकिय णहसुच्छाइया । जा सणिद्धमुत्ताहलदसणिय सुंदरी सा हवेइ चक्कवइहे पिय गुगमंजरी ।। (मंजरी) तित्तिरसद्दालावणिया' पारेवयसम णरभोयणिया। मिलियभउह कुललंणिया सा छिछइ छेयल्लहिं भणिया ॥ (खंडिया) थोरसुमंथरणासा लंजिय अह होइ थोवधणवंती। जा वायसगइसद्ददिट्ठी सा दुक्खभायणा कण्णा ॥ (गाहा) ( इय तिभंगियणाम छंदो )। जा कुम्मुण्णयचलण विसमंगुलि खरिलंबोट्टि खोसला । सिर फलंसुद्धकेस चललोयण करजंघोरुमंसला ॥ गमणुत्तावलीय सव्वंगसमुट्ठियरोमराइया । सा फुडु होइ पुत्तभत्तारविओयदुहेण छाइया ।।दुवई।। (गाहीकडवयं ) "मुहमंसुर कडिउरणाहिलोमकरि कढिणफास कढिणंगी। सा रक्खसि पञ्चखं वजसु हे सुहय किं बहुत्तेण ॥ घत्ता-इय गिर सुणेवि तही गुण थुणेवि कामाणलसंतत्तउ । तो सुण्णमणु झिजंततणु वणिसुउ णियघरु पत्तउ ॥१४॥ तहि सुंदरि मंदिर' जइवि पत्त कर मोडइ छोडइ केसभारु भूभंग तुंग' खणे करेइ सइँ अलियउ ललियउ दरहसेइ १५ सुकुमाला बाला रत्तचित्त । गले घल्लइ मेल्लइ तारु हारु । सयणीयलु कोमलु परिहरेइ । सा झायइ गायइ णीससेइ । १३. ७ क विसि । १४. क तित्तिरच्छि दालिद्दिणियाः ख सद्दा लक्खणिया। २ ख ग घ पारेवय पर। ३ क कुडिलं ग घ कुलिलं। ४ क छिछइ जइ छेल्लहिं । ५ क ख जा पुणु । ६ क फुरुः ख सिरफुर। ७ क गाथा नहीं। १५. १ क मंदरि। २ ख ग घ तु । ३ क खलियउ ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy