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________________ २७ ४. ४.२] सुदंसणचरिउ जाहे चारुतिवलिहे ण पहुच्चहि जलउम्मिउ सयसक्करु वच्चहि । जाहे णाहिगंभीरिमजित्तउ* गंगावत्तु ण थाइ भमंतउ । जाहे मज्झु किसु अवलोनवि हरि णं तवचरणचित्तु गउ गिरिदरि । जाहे सुरोमावलिए परजिय णाइणि बिले पइसइ णं लज्जिय । घत्ता-अयसइँ कलिय रोमावलिय जइ णवि विहि विरयंतउ । तो मणहरेण गुरुथगहरेण मज्झ अवसु भजंतउ ॥२॥ जाहे गिएविणु कोमलवाहउ बिस वि करहिं तग्गुणउम्माहउ । जाहे पाणिपल्लवइँ सुललियइँ कंकेल्लीदलहिँ वि अहिलसियइँ । जाहे सद्दु णिसुणिवि अहिहवियए णं किण्हत्तु धरिउ माहवियए । जाहे कंठ रेहत्तयणिजिय संख समुद्दे बुड्ड णं लज्जिय । जाह अहरराएँ विद्दुमगुणु जित्तउ तेण धरिउ कढिणत्तणु। जाहे दसणकतिट जिय णिम्मल सिप्पिहि ते पइट्ठ मुत्ताहल । जाहे साससुरहिम णउ पावइ पवणु तेण उव्वेविरु धावइ । जाह विमलमुहयंदसयासट णिवडणखप्परं व ससि भास। जाहे णासवंसे ओहासिय ते सर्वक पयडइ सुउ णासिय । जाहे णयण अवलोपवि हरिणहि विभिएहि रइ बद्धी गहणहि । जाहे भउहवंकत्ते सुरधणु जित्तउ हवइ तेण सो णिग्गुणु । जाहे भालजिउ किण्हट्ठिमिससि हवइ खीणु अज्जु वि खेयही वसि । केसहि जाट जित्त अलिसत्थ वि रुणरुणंत रइ करहिण कत्थ वि। ___घत्ता-सोमालियर्ह तह बालियह रूठ णियच्छिवि सुहयरु । विभियमणेण सुहृदंसणेण पुणु आउच्छिउ सहयरु ॥३॥ किं तार तिलोत्तम' इंदपिया किंणायवहू इह एवि थिया। किं देववरंगण किं व दिही ---- किं कित्ति अमी सोहग्गणिही। २. ४ ग घ इ । ५ ख जुत्तउ। ६ ख गंगावुत्तु ण। ७ प्रतिषु 'अहमई । ८ ख कलि । ३. १ ख घ घरइ। २ क थिविरू। ३ क प्रोहामिय। ४ ख बंधिय । ५ क मुहयरु; ख वणिवरु। ६ ख सइंसणेण । ४. १ क तिलोत्तम। २ क वेइ। ३ ग घ उम्मी।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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