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________________ णयणदिविरइयउ [२. ११:१घत्ता-सुंदरपयलक्खणसंगय विमल पसण्ण सुहावह । णावइ तिय सहइ सइत्तिय णइ अहवा सुकइह कह ॥११॥ १२ पप्फुल्लकमलवत्ते हसति' . अलिवलयघुलियअलय' कहति । दीहरझसणयणहिँ मणु हरति .. सिप्पिउडोटउडहिदिहि जणंति । मोत्तियदंतावलि दरिसयंति पडिबिंबिउ ससिदप्पणु णियंति । तडविडविसाह बाहहि णडंति पक्खलणतिभंगिउ पायडंति । वरचक्कवाय थणहर णवंति गंभीरणीरभमणाहिवंति। फेणोहतारहारुव्वहंति उम्मीविसेसतिवलिउ सहति । सयदलणीलंचलसोह दिति जलखलहलरसणादामु लिति । मंथरगइ लीलए संचरंति वेसा इव सायरु अणुसरंति । ५ घत्ता–हरिसियमणु गंजोलियतणु सुहउ णियच्छिवि सुरसरि । कयरोलहिँ सहुँ गोवालहिँ कीलइ चिरु णावइ हरि ॥१२॥ १० खणे लिहक्कइ थक्कइ देइ झडा खणे णासइ तासइ एइ अहो खणे संकइ ढंकइ आणणयं खणे धावइ आवइ णाइँ मणो अह एक्कु चमक्कु वहंतु मणे णिरु कंपइ जंपइ सो सहसा तुह गाविउ जोविउ जंतियउ णिसुणेवि धुणेवि सिरं चलिओ खणे लोट्टइ पेट्टइ गोवथडा'। खर्ण कीडइ पीडइ णाइँ गहो । खर्ण मोडइ लूडइ काणणयं । खणे दीसइ णासइ णाइँ घणो। इल-रक्खु समक्खु पहुत्तु खणे । अही चल्लि म खेल्लि महंतजसा। परतीरे गहीरे पहुत्तियउ । इय छंदु वि तोडणउ कहिओ । ११. १४ क साहिय। १२. १ ख ग घ सहति । २ क दोहरक्खमीणहिं। ३ ख अणुहरति । ४ सिप्पियउडेहि गह। ५ क पडिबिबिय। ६ क बाहडे । ७ ख बहंति ।। १३. १ क गेडिदडा। २ ग घ एह। ३ ख लूडइ मोडइ। ४ क लइ। ५ क वलेवि। ६ ख छंदउ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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