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________________ सुदंसणचरिउ विबुहवइ वि जो सुर ण णिहालउ अज्जुणगुणु वि ण गुरुपडिकूलउ। णरजेठु वि इच्छियधयरट्टउ बाहुबलि वि जो भरहगरिठ्ठउ । जो रामु वि हलहरु णउ भणियउ परवंसग्गि वि णउ अविणीयउ । जो सामि वि णउ ईसरसंगउ सारंगु वि पुंडरियसमग्ग। णायवियारणो वि ण मयाहिउ सायरो वि णउ झससंखोहिउ । चउरासु वि जो अक्खरहियकरु जो विवर्खवहणु वि णउ सिरिहरु । णीसु वि कमलच्छीआलिंगणु सगुणधणु वि ण परम्मुहमग्गणु । घत्ता-तही रायही जगविक्खायही अभया णामे राणी। रइ कामही सीया रामही णं इंदहा इंदाणी ॥४॥ अह तहिँ रायसेट्टि धणरिद्धउ रिसहदासु णामे सुपसिद्धउ । चंदु व सयलउ' कुवलयकतउ जिणसमउ व्व सहइ णयवंतउ । अहवा माहउ व्व सवियाणउ अमरेसरवारणु व सदाण। दिणयरउग्गवणु व णिहोसउ सिसिरयालु णं जणियपोसउ । माहिसखीरु व सव्वसणेहउ वासारत्तु व उण्णयमेहउ। सञ्चाउलु णं पुरवरआवणु भोयवंतु फणिवइ व सुहावणु। सोहइ वायरणु व बहुलक्खणु अज्जुणु इव कण्णंतणिरिक्खणु । चडियसरासणु व्व सुगुणड्ढउ महकइकहबंधु व अत्थड्ढउ । घत्ता-बहुलक्खण तहाँ सुवियक्खण अरुहदासि णामे पिय। सइ इंदही रोहिणि चंदही सहइ मुरारिहे ण सिय ।।५।। दीहरच्छि रयणावलिभासिय अइपसण्ण कतिल्ल सुहावह णं धम्महँ णयरी आवासिय । ससिरेहा इव कुवलयवल्लह । ४. ४ क पत्थिव । ५ ग घ वि.रण। ६ क समुग्गउ । ७ क सजन संखोहिउ । ५ ख विक्क्छ । ख गय । ५. १ क ख सयल सु। २ क गणिसमउ। ३ क माहवोः ख नारायणो। ४ ग घरगाइ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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