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________________ १. ९.६ सुदंसणचरिउ अहो झडप्पिमापरो णसेइ एस वेसरो। णराहिवाणुराइणी खिवेसए विलासिणी। इमो सुंछदु उत्तओ पमाणिया णिउत्तओं। घत्ता-जिणदसणम्मि अणुरत्तु जणु हरिसे कहिँ मि ण मंतओ । रेहइ चंदुग्गर्म मयरहरु णं कल्लोलहिँ जंता ।।७।। १५ दीसइ पत्थिवेण जणमणहरु तुंगसिहरु' विउलइरि महीहरु । करिगजियहिँ पाहुणं वाय कोइलकलरवेहि णं गायइ। वरहिणीहि णडियहिँ गं णञ्चइ णं कुरंगउड्डाणहिँ वच्चइ । तिणरोमेहिँ गाइँ पुलइज्जइ णिज्झरेहि णं बहुलु पसिज्जइ । इय चाडुय करेइ जगवंदहीणं दरिसंतु भत्ति जिणइंदहीं। तिहुवणसिरिह णाहु कहिँ आवइ आयओं वि कहिँ खणु वि चिरावइ । हउँ कयत्थु जिणरिद्धिविसेसे पभणई महिहरिंदु हरिघोसे । अह को संपयाए णउ गजइ विरलउ णियगुणेहि पर लज्जइ । घत्ता-सकाणण धणयविणिम्मियउ समवसरणु महिवाले । दीसइ गयणयले परिट्ठियउ माणससरु व मराले ॥॥ धणुसहस पंच महि परिहरेवि जहिं चउदिसु मंदर छाय दिति महि इंदणीलमाणिक्कबद्ध चउमाणथंभ जिणकेयणाइँ धयकप्परुक्ख सुरहर महंत मंगलव्वट्ठ पवित्त दित्त - थिउ जोयणेक्कु णहि वित्थरेवि । सोहइ सुवण्णसोवाणपंति । जोयणपमाण गयणयल सुद्ध । परिहा वल्ली वणउववणा। कोट्ठय मणिथूह परिप्फुरत। चउ जक्ख धम्मचक्केण जुत्त । ७. ३ क ख फरो। ४ ख ग घ. तसेवि। -५ ख ग घ इमो वि छंदु वुत्तो । ६ ग घ गिरुत्तो। ८. १ क सिहरि ।- २ क ख पयडु। ३ क वाहइ। ४ ख वरहिणेहि । ५ ख उड्डाणेहि । ६ ख जिणयंदहो। ७ क आगो। ८ ख भणइ व। ६ क कयघोसें। ६. १ ग घ महि । २ क थूवह; ग घ थूव । ३ क ग घ चउसट्ठि जक्ख चक्केण जुत्त ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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