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________________ ( ४६ ) विवाह (५) विवाहोत्सव (६) मध्याह्न भोजन ( जेवनार ) (७) सूर्यास्त-वर्णन । (८) रात्रि वर्णन (९) वर-वधू की काम क्रीड़ा (१०) सूर्योदय- वर्णन । सन्धि ६ (१) ऋषभदास का मुनि-दर्शन ( २ ) मद्यपान के दोष (३) मांस भक्षण के दोष (४) मधुपान के दोष (५) जीवों के भेद व हिंसा से पाप (६) अमृषा आदि व गुणव्रत (७) सामयिक आदि शिक्षा व्रत (८) पात्र दान का स्वरूप और फल (ह) रात्रि भोजन के दोष (१०) रात्रि-भोजन से अन्य सब साधनाओं की निष्फलता (११) रात्रि भोजन के परिणाम (१२) रात्रि भोजन का फल दरिद्रता (१३) रात्रि भोजन त्याग से उत्पन्न सुख (१४) स्त्रियों के रात्रि - भोजन के सुफल (१५) स्त्रियों के रात्रि भोजन से दुष्परिणाम (१६) मधु-बिन्दु दृष्टान्त (१५) दृष्टान्त संसार का रूपक (१८) सेठ का स्वपुत्र को लोक व्यवहार का शिक्षण (१६) राजसभा योग्य आचरण (२०) ऋषभदास की सुदर्शन को गृहभार सौंपकर मुनि दीक्षा और स्वर्ग-गमन (२१) । सन्धि ७ (१) सुदर्शन का सुखी जीवन (२) सुदर्शन पर कपिला का मोह (३) कपिला की विरह वेदना ( ४ ) सुदर्शन से कपिला की भेंट और निराशा (५) वसन्त का आगमन (६) नानावादित्रों की ध्वनि (७) राजा और प्रजा की उपवन-यात्रा (८) वन की वृक्षावली का विलासिनी सदृश सौंदर्य (६) रानी द्वारा मनोरमा की प्रशंसा (१०) रानी द्वारा कपिला का मर्म - ज्ञान (११) कपिला का मर्म - प्रकाशन व रानी का उपहास (१२) रानी की कुत्सित प्रतिज्ञा (१३) उद्यान की रंगरेलियाँ (१४) कानन और कामिनी विलास (१५) प्रेमियों की वक्रोक्तियाँ (१६) सरोवर की शोभा ( १७ ) रमणियों की जलक्रीड़ा (१८) जलक्रीड़न में आसक्त नारियों की शोभा (१६) अभया रानी का साज-शृङ्गार | सन्धि ८ (१) राजमन्दिर की शोभा (२) अभया की विरह-वेदना (३) पंडिता का रानी को सम्बोधन (४) रानी का उन्माद (५) पंडिता का रानी को पुनः हितोपदेश (६) रानी का प्रत्युत्तर (७) पंडिता द्वारा शील की प्रशंसा (८) स्त्री- हठ दुर्निवार है ( ९ ) भवितव्यता टल नहीं सकती (१०) दुर्भावना की जीत (११) पंडिता द्वारा पुतलों की कल्पना (१२) द्वारपालों से संघर्ष (१३) द्वारपालों को पंडिता की धमकी (१४) द्वारपालों का वशीकरण (१५) सुदर्शन को अपशकुन हुए (१६) श्मशान का दृश्य (१७) सायंकाल का दृश्य (१८) कामिनियों की काम लीलाएँ (१६) वेश्याएँ और उनके प्रेमी (२०) पंडिता का सुदर्शन को प्रलोभन (२१) अभया के प्रेम का दर्शन (२२) पंडिता का सुदर्शन को जबर्दस्ती राजप्रासाद में ले जाना ( २३ ) रानी के शयनागार में सुदर्शन का धर्म-संकट (२४) सुदर्शन की धर्म - भावना व भीष्म प्रतिज्ञा
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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