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________________ ( ३३ ) २९. कुवलयमालिनी-मात्रा २४ अन्त ग सं० ११. १६-१९। उदा०-अण्ण वि किलिण्णइँ मडयचडिण्णइँ रडियाइँ। अण्णइँ गयवत्थइँ पसरियहत्थई णडिया। अण्णइँ सयवयण पिंगलणयण बहुभुअ।ि अण्णइँ किमिवड्ढई बहुदुग्गंध. लहु मय.। (११.१६.११-१४) ३०. शालभंजिका-मात्रा २४ अन्त ल ग सं० ७.१२ । उदा०-मयरकेउ सुहदसणु जइ ण रमेमि हउँ हले। तो मरेमि ओलंबेवि पासउ कंठकंदले। जइ पइज्ज णउ पालमि तो हउँ कविले लंजिया। छंदु एउ सुपसिद्धउ णामें सालहंजिया । (७.१२.१५-१८) ३१. कामलेखा-मात्रा २७ अन्त ल ल सं० ७.८ । (पद्धडिया) उदा०-कंचणवंत सुमंड कोइलललियालावसुहासिणि । तरुराइय वणे तेत्थु दिद्विय राएं णाई विलासिणि । इय गुणेहिं परउण्ण कासु ण हियवउ हरइ णिरुत्तिय । कामलेह णामेण पद्धडिया फुडु एस पउत्तिय । (७. ८. १३-१६) ३२. भ्रमरपदा-मात्रा २७ १०+८+९ अन्त ल ल सं० ८.२६.५-८ । (षट्पदी) उदा०-जइ इच्छहि बालउ अलिणिहबालउ कुवलयसामलिउ । मयरद्धयलोलिउ मुंभुरभोलिउ किसलयकोमलिउ ।। थणभारक्कंतिउ जियससिकंतिउ कुलिसकिसोयरिउ । ओलंबियहारउ जणमणहारउ रइहे सहोयरिउ ॥ ३३. द्विपदी-मा० २८ अन्त ल ग सं० ४.१४ १०-११, (गाही कडवक) ५.१ आदि (प्रत्येक कडवक के प्रारम्भ में) उदा०-गमणुत्तावलीय सव्वंगसमुठ्ठियरोमराइया। सा फुडु होइ पुत्तभत्तारविओयदुहेण छाइया ।। (४.१४. १०-११) ३४. रचिता-मात्रा २८ अन्त ल ग सं०.११.१ आदि (प्रत्येक कडवक के आदि में) . उदा०-तहो तवचरणु णवर णिसुणेप्पिणु णखइ धाइवाहणो __ अणिमिसणयणु पुणु वि पुणु चित भवभयतसियणियमणो । (११.१.२-३) ३५. विज्जुला- (द्विपदी) रचिता के समान ९. ७ ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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