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________________ ( १६ ) इन्द्राणी - मुझ से बढ़कर कोई स्त्री सौभाग्यवती नहीं है, सुपुत्रवाली भी नहीं है । मुझ से बढ़कर कोई स्त्री पुरुष के पास शरीर को नहीं प्रफुल्ल कर सकती इत्यादि । वृषाकपि-माता इन्द्राणी, तुमने सुन्दर लाभ किया है । तुम्हारा अंग, जंघा, मस्तक आदि आवश्यकतानुसार हो जायेंगे । प्रेमालाप से कोकिलादि पक्षी के समान तुम पिता को प्रसन्न करो । इन्द्र सर्वश्रेष्ठ हैं । इन्द्र-सुन्दर भुजाओं, सुन्दर अंगुलियों लम्बे बालों और मोटी जांघों वाली, वीरपत्नी इन्द्राणी, तुम वृषाकपि पर क्यों क्रुद्ध हो । इन्द्राणी -- यह हिंसक वृषाकपि मुझे पति-पुत्र- विहीना के समान समझता है । परन्तु मैं पति-पुत्र वाली इन्द्रपत्नी हूँ । मेरे सहायक मरुत् लोग हैं । इन्द्र - इन्द्राणी, अपने हितैषी वृषाकपि के बिना मैं नहीं प्रसन्न रहता । वृषाकपि का ही प्रीतिकर द्रव्य देवों के पास जाता है । इन्द्र सर्वश्रेष्ठ हैं । पुरुषों पर कामासक्त होकर स्त्रियों द्वारा उनके फुसलाये जाने की अनेक कथायें पालि जातकों में पायी जाती हैं। समिद्धि जातक (१६७ ) के अनुसार एक बार बोधिसत्व के सुन्दर शरीर को देखकर एक देव कन्या उन पर आसक्त हो गयी और बोली कि आप बिना भोग विलास का सुखानुभव किये भिक्षु बन गये यह उचित नहीं । सुख भोग कर ही भिक्षु बनना उचित है । इस पर बोधिसत्व ने उसेयह कह कर चुप कर दिया कि कौन जानता है मृत्यु कब आ जाय ? अतः जितने शीघ्र हो सके, बिना भोगविलास में समय खोये प्रब्रजित होकर अपना कल्याण करना उचित है ! महापद्म जातक (४७२) में यह प्रवृत्ति एक और चरण आगे बढ़ी पायी जाती है । यहाँ न केवल पर-पुरुष पर किन्तु अपने ही सोतेले पुत्र पर कामासक्त होकर उसे प्रेरित करने और असफल होकर उसे मरवा डालने का भी प्रयास पाया जाता है । बोधिसत्व वाराणसी के राजा के पुत्र रूप में उत्पन्न हुए । मुख की अपूर्व शोभा के कारण उनका नाम पद्मकुमार रखा गया । माता की मृत्यु हो गयी और राजा ने दूसरी पटरानी बनायी । एक बार राजा विद्रोह को शान्त करने के लिए राजधानी से बाहर गया । अवसर पाकर रानी ने पद्मकुमार से प्रेम का प्रस्ताव किया जिसे उसने सर्व ठुकरा दिया । निराश होकर रानी ने उसका सिर कटवा डालने की भी धमकी दी। तो भी कुमार नहीं माना। रानी ने अपने शरीर को अपने ही नखों से नोंच डाला और मैल कुचैले वस्त्र पहन कर शय्या पर पड़ रही । राजा के आने पर उसने कहा पद्मकुमार ने उस पर कामासक्त होकर उसकी यह दुर्दशा की है । राजा ने रुष्ट होकर पद्मकुमार को चोर-प्रपात से गिराकर मार डालने का आदेश दिया । वनदेवी ने उसे गिरते हुए अपनी हथेली पर लेकर बचाया । कुमार प्रव्रजित हो गया । राजा को पता चला और उसने कुमार को मनाकर राज्य में वापिस लाने का प्रयत्न किया । किन्तु कुमार ने नहीं माना। सच्ची बात जानकर राजा ने उस रानी को उलटे पैर चोर-प्रपात से गिरवा कर उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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