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________________ संधि १२ अह तहिँ तेहए अवसरे सत्तमवासरे घाइचउक्कु विवण्णउ । सुहृदंसणही मुणिंदही णरसुरवंदहो केवलणाणुप्पणउ ॥ [ ध्रुवकं] हुउ अवियलु केवलु मुणिहिँ णाणु जाता वर सुरहरं सुरपहाणु । दीहरकरु गयवरु आणवेइ . -सो वित्थरु मणहरु तणु करेइ । बत्तीसइँ आसइँ णिम्मियाइँ मयरत्तइँ णेत्तइँ दूणिया । सोहारुहे मुहे मुह अ४ दंत पुणु दंते दंते जलयर सहत । एक्केक्क थक्क सरवर महंत तहिँ सरवरि सरवरि विप्फुरंत। एक्केक्के थक्की भिसिणि अमल बत्तीसेक्केक्कही जाय कमल। . हुये कमले कमले बत्तीस पत्त तहिँ पर्त पर्त परमेट्ठिभत्त । बत्तीस दुतीस ठवंति णट्ट रसकोच्छर अच्छर तणुविसट्ट। घत्ता-जंबूदीवही जेत्तिउ वित्थरु तेत्तिउ किउ संवरिउ करि दें। तत्थुवलग्गिवि आएँ मणि अणुराएँ थुव्वई एम सुरिंदे ॥१॥ १० 2 जय जणमणहर जय महजसहर जय दढहयसर जय वरपयकय जय कयदयवह जय तमवणदह जय भवभयहरं । गणणहससहरें। जय जलहरसर। जय वरपयणय । जय तवरहवहँ । जय जयवणदहे। ५ १. १ क ख मुहे अट्ठ। २ क में अगले तीन चरणों के स्थान में केवल ये दो चरण हैं- सरवरे कमालनि बत्तीस अमल । भिसिणिहे भिसिणिहे बत्तीस कमल। ३ क तहु । ४ ख हवंति। ५ क ग घ बुच्चइ । २. १ क भयमयहर। २ क गुणणहससहर। ३ ख जय जय दयवह। ४ ग घ तंवरवह। ६ क वह । १६
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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