SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४ जयणदिविरइयउ [११.१०.१ तडिचवलयरविसयसुहपरवसु हउँ बहु विहुर पत्तओ'। इय पुणु पुणु वि जाम किर णियमणि चिंतइ मुणि विरत्तओ॥ [रचिता] ताम उमाकमकमलिंदिदिरि सविलास अवलोइवि सुंदरि । पासु पढुक्किय मुणिवरणाहही खमवासही तवलच्छिसणाहह।। पभणइ किं अप्पड दुहि जुंजहि । सोक्खधवक्कउ सुंदर भुंजहि । तउ करेवि सुहु परभबि लब्भइ गोथणु चयिवि सिंगु किं दुज्झइ । तुहुं सोलहआभरणहिँ जोग्गड मलविलित्तु किं अच्छहि जग्गउ । एवमेव किं तणु संतावहि मज्म हियस्थवयणु परिभावहि । अह वा तबहु गाहु जइ लग्गउ तो माणिवि सुहु होजसु णग्गउ । रमहि किं ण महिलउ कोमलियउ हा हा किं तुहुँ दइवे छलियउ। घत्ता-छणससहरवयणउ अइथोररमणु चक्कलथणु । विन्भमचलणयणउ माणिजउ वररमणीयणु ॥१०॥ तं परभवे सवेण किं लब्भहि परभउ केण दिट्ठओ। । कइँ वि दिणाई जाम जीविजइ माणिज्जइ मणि?ओ ॥ [रचिता] जे मण्णिउ णियतणु णं जरतणु इय वयणहिँ किं भिजइ तहाँ मणु । पुणु करेइ कयजणमणविन्ममु हाउ भाउ सविलासु सविन्भमु। दरसिक्कार फार आवेलणु ईसि ईसि मम्मणु थणपेल्लणु। करपहारु दिव्वाहरपीलणु जीहाविलिहणु णयणुम्मीलणु। कामठाणु दरणहसंघट्टणु णाणाकरणबंधपरियट्टणु। इय लहेवि जसु हियउ ण भिजइ तसु समाणु को मुवणे भणिज्जइ । धण्णउ सो जि बप्प स कइस्थउ भवसमुद्दउत्तरणसमत्थः । रयणिउ तिणि दियह गय जामहि तीन विलक्खिया मुणि तामहि । १० १०. १ ग घ बहु वेर पत्तो । २ ख सविलासहो प्रक्लोयइ। ३ ख हियत्त । ४ ग घ होजहि । ५ क ख रमणीययणु ; माणिजइ वर रमणिउरमणु । ११. १ ग घ जिरतणु। २ ख लब्भइ तसु। ३ ख घ जोहविलेहणु । ४ क कामण। ५ क दरणहरसंघट्टणु। ६ ख °समुद्दत्तारणह। ७ क दियस ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy