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________________ ३२ गयणदिविरइयउ [११. ६. १७तवचरणें विणडिउ दिट्ठिहिँ णिवडिउ जइ णउ वसि करमि । तिहुवणपरमेसरि तो कुंडेसरि पायग्गें हणमि ॥ घत्ता-हुय पसिद्धि णयरे तहा दंसणम्मि तरुणीयणु। थिउ उम्माहियओ दिवसयरही णं भिसिणीवणु ॥६॥ २० ता एत्तहे वि सगुरु परिपुच्छेवि सुरणरकयपसंसणो । जिणकमकमलजुयल वंदतउ विहरइ मुणि सुदंसणो॥ [रचिता] रिसह अजिउ अहिणंदणु सुमइ वि जिणु अणंतु साकेयह पणविवि । सावस्थिहिँ बंदिय संभवजिणु क्रोसर्बिहिँ पउमप्पहु तो पुणु । वाणारसियहिँ पासु सुपासु वि चंदउरिहिँ चंदप्पहु' संसेवि। पुप्फयंतु कार्यदिहिँ सारउ भदिलपुरि सीयलु जि भडारउ। सीहउरण सेयंसु जिणेसरु चंपहे वासुपुज्जु परमेसरु। विमलएउ कंपिल्लहिँ जगगुरु धम्मु रयणउरि पयपणवियसुर। संति कुंथु अरु गयउरे जिणवर मिहिलहिँ मल्लि णमिवि तित्थंकर । रायगेहे मुणि सुव्वउ णंदिउ रिट्ठणेमि सउरीउरि वंदिउ। 'चरमु देउ तइलोयणमंसिउ वड्ढमाणु कुंडलपुरि संसिउ । इय विहरंतु संतु तवतत्तउ पाडलिउत्ति णयरि संपत्तउ । घत्ता-तहिँ कुसुमउरे मुणि छुड़ छुडु चरियान पइट्ठउ । ता पंडियए लहु धवलहरारूढिए दि©उ ॥७॥ मुणिवरु णिशवि विउसि दर विहसेवि सिसुसारगणेत्तहे। सकरंगुलिसण्णा' दरिसेप्पिणु अक्खइ देवयत्तहे ॥ [रचिता] इहु सो जो चंपाणयरि वुत्तु इहु सो जो जिणदासियह पुत्तु । इहु सो जो पुरसंखोहवंतु इहु सो जो सुमणोरमहिँ कंतु । ७. १ क गुरुः ख सुगुरु । २ क ग घ चंदप्पह चंदउरिहें। ३ ख ग घ काकिदिहि । ४ क घ रयणपुरे। ५ क गयपुरे ; ग घ गयबरे । ६ क में ११-१२ पंक्तियों के स्थान में यह एक मात्र पंक्ति है-पाडलिउत्तणयरे संपत्तउ । साहु सुदंसणु गुणगणजुत्तउ। ८. १ क वियसेवि ; ख विहसइ। २ क सकरंगुलिए सरणए ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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