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________________ गयणदिविरइयउ [११. ४. ८एयारह सावयगुण भासइ बारहविहतवेण तणु सोसइ। तेरहविहु चरित्तु परिपालइ चउदह भूयगाम सुणिहालइ। पण्णारहहँ पमायहँ बीहइ सोलह सग्गठाण ण समीहई। १० सत्तारह वि असंयम छंडइ संपराय अट्ठारह मंडइ। एउणवीस णाहसन्माण मुणइ वीस असमाहीठाण। एक्कवीस सवल वि संखोहई तह वावीस परीसह विसहइ। सुद्दयडज्झयण' तेवीस वि अक्खइँ जिणतित्थई चउवीस वि । पंचवीस भावण उग्गोवई छन्वीस वि पुहविउँ परिभावइ। सत्तवीस मुणिगुण उक्करिसई अटुवीस आयारइँ दरिसइ । एउणतीस पावसुर्य" दूरई तीस मोहठाणइँ मुसुमुरइ। एक्कतीस मलवाय दुगंछइ जिणबत्तीसुवएसइँ वंछइ । घत्ता-एत्तहिँ कुसुमउरे जा पंडिय आसि पणट्ठी । देवदत्तपुरओ सा कहइ कहतरु तुट्ठी ॥४॥ १५ इह वरभरहे अंगदेसंतरे चपर्ह धाइवाहणो । णरवई अभयदेविसंजुत्ता अस्थि तिलोयमोहणो ॥ [रचिता] अह तहिँ रिसहदासु णामें वणि अरुहदासि तह। सगुण णियबिणि । तीन पुत्त सुहदसणु जायउ हुउ जुवाणु तिहुवणविक्खायउ । सायरसेणु अस्थि अवरु वि वणि सायरसेण णाम तही पणयिणि । ताहे धूय णामेण मणोरम परिणिय सुहृदंसणिण मणोरम । तो सुकंतु णंदणु तहो जायउँ एत्तहे उववणम्मि मुणि आयउ । धम्मसवणु तही पासे सुणेप्पिणु रिसहदासु थिउ दिक्ख लएप्पिणु ।' अह वहिँ अस्थि तासु रायही हिउ कविलभट्टु णाम उवरोहिउ । ४. ३ क सग्गठाण सम्मोहइ। ४ ख ग घ परिरखोहइ । ५ क मह ; ख मुणि । ६ ख सुद्दवडई उमाणई। ७ क अक्खय। ८ ख भावणउ ण गोवइ। ९ क पुहइउ । १० क मुणिगणउं करेसइ। ११ ख पावसुइ। १२ क दूरहिं । १३ ख बत्तीसमुवएसई। ५. १ ख अच्छइ। २ ग घ अस्थि । ३ ख सूव । ४ क तहो विवाहु जायउ सुप्रणोवम । ५ ख तें; ग घ तं । ६ ख णंदणु संजायउ ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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