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________________ १२० जयणदिविरइयउ [१०. २. ४जय इंदियपडिभडदलण जय जाणियपरमत्थ । जय जरमरणविणासयर जय जय जय णिग्गंथ ॥ वस्तु । जय अमोहरविमोहतणुपहा धाउरहियसवरहियेचउमुहा। जयहि पगुणगुणगणविहूसियाँ जयहि असुरसुरणस्पसंसिया। जय अमाण जय माणलक्खया जय अकाम कामत्तणक्खया। जय हि कुणयमयगलमयाहिवा जय तिलोयलोयाण कयकिवा । जय सुपास आसाविणासया जयं अकरण जमकरणतासया। जय सकमल मुक्कमल इह थुआँ जयहो सरण समसरणसंजुआ। सुमुणिराय गयरायदोसया सुरहिगंध सुरहिय अलेसया। जयहि अणह णहविद्धिवजिया वासुपुज्ज पुजाणुपुजिया। (विलासिणी णाम छंदो) घत्ता-जइ सयलहो गयणयलही पारु को वि चकम्मई। तो आरिसु अम्हारिसु तुह गुण वण्णिवि सक्कई" ॥२॥ १५ ५ खुहइ खलयणु मुअइ करि दप्पु सप्पो वि णिव्विसु हवइ विसु वि अमियरूवें पवत्तइ । सिहि सीयलु संभवइ कमु वि दिंतु केसरि णियत्तइ॥ कुलिसकठोर दिढुब्भडइँ पयणियलइँ तुति । धीरुवसग्गइँ अवर वि' तुह णामें फिटुंति ॥ वस्तु ॥ थुणेइ देउ मोक्खहेउ चित्ति जाम हिट्ठओ। सुरिंदवंदु तें मुणिंदु ता णिसण्णु दिट्ठओ॥ तवग्गितत्तु मोहचत्त सिद्धिकंतरत्तओ। मयाण भट्ठणेत्तइहुँ जल्ललित्तगत्तओ ॥१॥ २. २ क प्रमाहरविमोह दिणयरतणुपहा ; ख प्रविमऊह । ३ ख सउरहिय । ४ क पगुणगणहिं ; ख सयलगुणगण। ५ प्रतिषु 'कामतणु अक्खया' । ६ क जयहि । ७ क सकमलकमलाणाहसंथुप्रा ; ग घ सकमलमुकल इह थुमा। ८ क समवसरण । ६ क रायदेसया। १० घ चमकइ। ११ क विरिण वि सक्कइ ; ख विरिणवि ण सकइ ; ग घ तुह पुणु वरिणवि सकइ । ३. १ ख अवयरिवि। २ ख मयाण णट्ठ । ३ ख णित्तइछु।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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