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________________ ११४ यदिविरइय [ ६. १५. २५ २५ घत्ता - तो णिवेण णिसियरु भणिउ रे णिल्लज्ज रणंगणे भग्गओ । जइ तो किं पुणु आइयउ णासि णासि पइँ मारिवि लग्गओ ||१५|| १६ णरवरिंदु णिडारेवि णयणइँ भल्लिएँ हणिविता मुच्छाविउ लहिवि चेट्ठ पिसयहो' णिवपुं जिगिजिगंत असिविज्जुल मणहर तक्खणेण चंपापुरपा दोहाइउ तिमियर दो धाइय हय चयारि मरु मरु पभणंता अणि सोलह सुविराइय बत्तीस विदोहंडिय जामहि ते ह तखणेण वित्थरियउ पुणविवेढि विइ केम सुठु वि बलवंत गुणगुरुक्कु तहिँ अवसरे सो सहसत्ति णट्ठ संवरि विठवण णिसियरेण अग्गन णिव पच्छन दिव्वु जाइ रयणीयरेण कड्ढविकिवाणु जज्जा हि सरणु सुहृदंसणासु तं सुणेवि सरणि गड गलियमाणु भइ ण भणई' जाम इय वयणइँ । अह सदप्पु को णावइ पाविउ ॥ धाइउ हरिहे णाइँ तंबेरमु । भिडिय बेवि णिसियरणिवजलहर ॥ जाउहाणु आउ करवालेँ । दो तो चयारि संपाइय ॥ तिसरो अट्ठ संपत्ता । सोलह हय बत्तीसुद्धाय ॥ चट्ठि जि उप्पण्णा तामहि । ( पारद्धिया नाम पद्धडिया छंदो ) घत्ता - मज्झे परिट्टिङ चंपवइ सोहइ णिसियहिँ सुरउद्दहिँ । विरणहिँ विउणहिँ" वेढियउ जंबूदीउ व दीवसमुद्दहि ||१६|| १७ अट्ठावीसा सउ उत्थरियउ ।। १ ख वेढिउ । कम्महिं संसारिउ जीउ जेम । किं बहुयहि लइयउ' करइ एक्कु ॥ णं सीहसमूह हत्थि तट्टु । गिभागर्म णिसि विदिणेसरेण ॥ जीव पुव्यंकि कम्मु णाइँ । तो बुइ णिवइ पलायमाणु ॥ रक्खेवर अण्णहो सत्ति कासु । जंपइ सुदीणु भयकंपमाणु ॥ ५ २ ख जा जाहि । १० १६. १ क पुणइ वि भणइ । २ क णिसियरहो ; ख णिसियरु ; ग घ णियरहो । ३ ग घ तमियर | ४ क सहेवि । ५ ख विहय । ६ ग घ अट्ठावीसउ सउ । ७ ग घ भत्ति । ८ कविउलहिं विउलहि । १७. ५
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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