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________________ 28०२ णयणदिविरहयउ [८. ४४. १ ४४ १० सुदुद्धरु' अंजणपव्ययकाउ दिसाकरितासणु मेहणिणाउ । सदप्पु वि वेज्मु ण देइ करिंदु मणम्मि भरंतह देउ जिणिंदु ॥१॥ पसुत्तु समुट्ठिउ दंतिसमीहु महाबलु लोललुलावियजीहु । सरोसु वि देइ कम ण मइंदु" मणम्मि भरंतह देउ जिणिंदु ॥२॥ तमालमहीरुहभपडसीसु दिणेसरसण्णिहलोयणभीसु । हवेइ पसण्णु पिसाउ रउद्दु मणम्मि भरंतह देउ जिणिंदु ॥३॥ "वियंभियवेलणहंगणवोलु जलोब्भवजीवपयासियरोलु । अथाहु वि गोप्पयमेत्तु समुदु - मणम्मि भरंतह देउ जिणिदु ॥४॥ फुरंत फणामणिरुद्धदियंतु तिलोयखयंकरु णाइँ कयंतु। वलेवि ण डंकइ कूरु फणिंदु मणम्मि भरंतह देउ जिणिंदु ॥५॥ दुसंचरतीरिणिपव्वयदुग्गि असंखमहीरुहभीसणमग्गि । कहिँ पि ण लग्गइ तक्करविंदु मणम्मि भरंतह देउ जिणिंदु ॥६॥ घिएण व सित्तउ तिव्वु जलंतु जगत्तउ जालहिँ णाइँ गिलंतु । स सोम्मु हवेइ सिही जह" चंदु मणम्मि भरंतह देउ जिणिंदु ॥७॥ णिमीलियबंधवसज्जण चक्खु अणेयपयारपयासियदुक्खु । विहट्टइ संखलबंधु" सुरिंदु मणम्मि भरंतह देउ जिणिंदु ।।८।। मणोहर इंदियसोहणिवारु भयंदरसूलसिलेसमसारु। पणासइ रोउ जहा जरु मंदु मणम्मि भरंतह देउ जिणिंदु ॥९॥ दुलंघु रएविणु पासयवूहु ण मारिवि सक्कइ सत्तुसमूहु। किवाणु वि होइ अलं अरविंदु मणम्मि भरंतह देउ जिणिंदु ॥१०॥ ___(मोत्तियदाम ) २० ४४. १ घ सुद्धरु। २ क वेब्भु : ख विझु। ३ ख भणंतहं । ४ घ समुट्ठिय दंतिसमू हु। ५ क घ मयंदु। ६ क में वियंभिय..... देउ जिणिदु -यह पूरा चौथा पद नहीं हैं। ७ क °फडाहि णिरुद्ध। ८ ग घ तिलोक । ६ घ दुसंचरि । १० घ जिम । ११ ख ग घ विदु। १२ क ख तहा जरविंदु। १३ ग रएप्पिणु पासहि; घ रएप्पिण पासहि कूहु ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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