SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२ सुहृदंसणु चिंतइ उव्वरेमि सुहृदंसणु चिंतइ कम्मणासु सुहदंसणु चिंतणाणला हु सुहृदंसणु चिंतइ मोक्खमग्गु सुहृदंसणु चिंतइ खवमि कम्मु सुहृदंसणु चिंतइ जगु अणिच्चु दिविरइय अभया चिंतइ सुंदरु धरेमि । अभया चिंतइ सुरयाहिलासु । अभया चिंतइ हुउ अंगे डाहु । अभया चितइ भुंजिउ ण भोग्गु । अभया चितइ मइँ किउ अहम्मु । अभया चिंतइ महु पत्तुमिच्चु । सुलह पायाल णायणाहु सुलह उ णवजलहरे जलपवाहु सुलह करी' घुसिणपिंडु सुलहउ दीवंतरे विविहभंडु सुलहउ मलयायले सुरहिवाउ सुलह पहुपेसणे कर्णौ पसाउ सुलहउ रविकंतमणिहिँ हुयासु सुलह आग धम्मो सुलह मणुयन्तर्ण पिउ कत्तु जिणसासणे जंण कया विपत्त घत्ता - सुहृदंसणु चिंतइ हियई अवहेरहि' अडयणसाहसु । अइसयकलाणहिँ सहिय- रे जीव अरुह आराहसु ||३१|| ( रयडा णाम पद्धडिया ) ३२ सुलहउ कामाउरे विरहडाहु। सुलह वराय वज्जलाहु । सुलहउ माणससरे कमलसंडु । सुलहउ पाहाणे' हिरण्णखंडु । ८. ३१. ३ सुलहउ गयणंगणे उडुणिहाउ । सुलह ईसा से जर्ण कसाउ । सुलहउ वरलक्खर्ण पयसमासु । सुलहउ सुकईयणे मइविसेसु । पर एक्कु जि दुलहु अइपवित्त । किह णासमि' तं चारित्तवित्तु । ( रयडा णा में पद्धडिया ) घत्ता -एम वियपिवि जाम थिउ अविओलचित्तु सुहृदंसणु" । अभयादेवि विलक्ख हुयता नियमणे चिंतइ पुणु पुणु ॥३२॥ १२ ३१. २ ख रमेमि । ३ प्रतिषु 'अवहेरमि' | ३२. १ क ख कासीरए । २ ख पाखरिण । ३.वासु । ४. ख बहु । ५. क सुलह सावरणे ( टि० सावज्ञे मूर्खे दुर्जने मिध्यादृष्टि पुंसि ) । ६ क सुलहउ णवकंत महि वासु । ७. ग घ 'लक्खणए । ८ ग घ दुलहउ । ६ क पामसि । १० क अवियलः ख अविचल । ११ ख सुदंसणु । वि पुणु । १२ ख हुय नियम चितइ पुणु ५ १० ५
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy