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________________ ८. १६. ४] versa लोया या सुइहर सूरहो देहिँ जलंजलि णावइ णिसिवेल्लिए ह मंड छाइउ सुदंसणचरिउ धत्ता - तो सोहइ उग्गमिउ हे ससिअर विमलपहालउ । णावइ लोयहँ दरिसियर णहसिरिन फलिहकञ्चोलर्ड ' ॥१७॥ विष्फुरियर तह णक्खत्तणिय रु तहि ँ काले पहिट्ठउ' कामिणीउ क वि भणइ सहित गुणरयणखाणि ससवित्तिहिँ कवि ईसा करे ई मंडीँ पिउरूसेवि जंतु पिउ हरिसिङ आलिंगणहँ जाइ परिरंभवि पुणु पुणु कवि घणेहि कासु विमाणिणिमुहे दिट्ठि जाइ संभावं दणकज्जें दियवर । पर अत्थमिउ णतं फुडु पावइ । जलहरमा णाइँ विराइउ । ( पारंदिया णाम पद्धडिया ) कहिँ विचारु सिंगारु करेपिणु' कहिँ वि वेस वल्लह अवमाणइ कवि सुरउरमेव संतुट्ठउ कहिं ́ वि दासि विडभडहो विलग्गइ १८ पायडि ताणं पुप्फपयरु । भूइँ लिंति थोरत्थणीउ । मण्णाविवि वल्लहु कत्ति आणि । पिउ कड्ढेवि केसग्ग ँ धरेई । हारेण निबंध का विकंतु । खेड्डे का विल्हिकेवि थाइ । पेल्लइ वच्छत्थले पिउ थणेहि । arise छप्पयति णाइँ । ( रयडा णाम पद्धडिया ) - घत्ता – पिउ अण्णहिँ आसत्तमणु पेच्छेवि क वि जूरई दूव । रे हि दुट्ठ हयास खल हउँ पइँ ण काइँ किय सुहव || १८ || १६ रति विड वेस णिएप्पिणु' पंगुलो वि धणवंत माणइ । कूड दम्मु देवि विडु उ । कच्छहिँ धरेवि भाडि पुणु मग्गइ । १७. ५ क सिरिहरः ख सुरहर । ६ क ख देइ । ७ घमंडलु । ८ ग घ कचोलउ । १८. १ खाई । २ ख पहिट्टिउ । ३ ख मण्णाववि । ४ ख करेवि । ५ ख पिउ प्रच्छिवि केसग्गहें करेवि । ६ ख छिद्देण । ७ ख वच्छत्थलु । ८ घ झरइ । १६ १। ८३ १० ५ १०
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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