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________________ प्रस्तावना आदर्श प्रतियों का परिचय 'सुदंसण चरिउ' के मूल माठ का प्रस्तुत संस्करण निम्नलिखित प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों के आधार से तैयार किया गया है तथा प्रत्येक पृष्ठ के अंत में उनके पाठांतर भी अंकित किये गये हैं। क प्रति : यह प्रति कारंजा के सेनगण भंडार की है। और उसके हाशियों पर प्रचुर टिप्पण लिखे हुये हैं। ये टिप्पण प्रस्तुत संस्करण के परिशिष्ट में उद्धृत किये जाते हैं। पत्र संख्या ८३, पंक्तियां प्रति पृष्ठ १० से १३ तक। अक्षर प्रति पंक्ति ३२ से ४० तक। आकार ११३" ४५३" । ग्रंथ के अंत में लेखक की निम्न प्रशस्ति पायी जाती है। ग्रंथ २००० संख्या। संवत् १६०५ वर्ष आषाढ़ वदि १०, शुभे श्री मूलसंधे श्री सरस्वती गच्छे श्री बलात्कारगणे भ० श्री विद्यानंदिदेवास्तत्पट्टे भ० श्री मल्लिभूषण देवास्तत्पट्टे भ० श्री लक्ष्मीचंद्र देवा, भ० श्री वीरचंद्रदेवास्तत्प? भ० श्री ज्ञान भूषण देवा । एतेषां मध्ये । भ० श्री लक्ष्मीचंद्राणां शिष्य आ० सकलकीर्तिना स्वपर पकारार्थ लिखितं । श्री प्रभाचंद्रः ब्र. गुणराजाय प्रदत्तं । श्रीरस्तु । आ० श्री गुणनंदिनां पुस्तकमिदं। इस प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि यह प्रति संवत् १६०५ आषाढ़ बदी १० को लिखकर पूर्ण की गई थी तथा उसकी गुरु परंपरा निम्न प्रकार है :-मूलसंघ सरस्वती गच्छ, बलात्कारगण, भ० विद्यानंदि, मल्लिभूषण, लक्ष्मीचंद, वीरचंद, ज्ञानभूषण । अन्यत्र प्राप्त पट्टावलियों से ज्ञानभूषण का काल संवत् १६०० से १६१६ तक पाया जाता है (देखिये : भ० संप्रदाय)। प्रस्तुत पट्टावली में भ० लक्ष्मीचंद्र के शिष्य तथा प्रतिलेखक आ० सकल कीर्तिका नाम नया है। प्रशस्ति के अंत में जो इस प्रति के प्रभाचन्द्र द्वारा गुणराज को दिये जाने का उल्लेख है, वह किसी अन्य हाथ से अन्य स्याही में अन्य समय पर जोड़ा गया है, जो उचित ही है; क्योंकि भ० प्रभाचन्द्र का काल सं० १६२५ से अर्थात् प्रति के लिखे जाने से २० वर्ष पश्चात् पाया जाता है। ख प्रति : यह प्रति अतिशयक्षेत्र महावीरजी के शास्त्रभंडार की है। पत्र संख्या ६५ । पंक्तियां प्रति पत्र १० । अक्षर प्रति पंक्ति ३६ । आकार ११" + ५"। अंत में प्रतिकार की निम्न प्रशस्ति अंकित है : संवत् १५६७ वर्ष माघमासे कृष्णपक्षे द्वितीयायो तिथौ बुधवासरे पुष्यनक्षत्रे श्री मूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वती गच्छे नंद्याम्नाये श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये भ० श्री पद्यनंदिदेवास्तत्पट्टे भ० श्री शुभचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भ० श्री जिनचंद्रदेवास्तत्पट्टे भ० श्री प्रभाचंद्रदेवास्तच्छिष्य मंडलाचार्य श्री धर्मचन्द्रदेवा तोडागढमहादुर्गात् राजाधिराज
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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