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________________ ७. १५.५] सुदंसणचरिउ को वि सकामुउ पायहिँ लग्गइ रमणिहिँ रमणु पलोयहुँ मग्गइ । पुणु पुणरवि णियचित्तु समप्पइ अहवा रत्तु ण किं पि वियप्पइ । घत्ता-करपल्लवसार णयणकुसुम थणफलधरि। णं मोहणवेल्लि सोहइ का वि किसोयरि ॥१३॥ १४ जहिं जहिं मत्तगइंदगामिणी णियच्छए लीलय का वि कामिणी । तहिं तहिं आण समीहमाणओ वियंभए वम्महु बद्धठाणओ ॥ सत्थ ।। थणवट्टपीणपीवरसतुंग क वि जोयई अवर वि माहुलिंग । क वि चाहइ सारुणकोमलाहँ अंतर रत्तुप्पलकरयलाहँ। तहिँ एत्तहे तेत्तहे भमरु जाइ कत्थई छप्पउ वि दुचित्तु भाई। काहे वि तुच्छोयरे' रोमराइ हुय पायर्ड मयणभुअंगि णाई। णीलुप्पलमालय मुद्ध का वि अवलोयइ मरगयमेहला वि। क वि णियगईट हंसु वि हसेइ सा तेण जि पियमागसे वसेइ । काश वि अउव्वधाणुकिणीष्ट तिक्खुजलगयणसरेहिँ तीन । विद्धउ परिहरिवि अविद्धु बिद्धु सहसा संतोसिउ मयरचिंधु । घत्ता-जहिँ जहिँ पिय जाइ तहिँ तहिँ पियमणु धावइ । _ तहा ताट अउव्वु मोहणु दिण्णउ णावइ ॥१४॥ १० लयाहरे पिंगुलयाणिरंधए भमंतफुलंधयफुल्लगंधएं। सुणेवि पारेवयंसढु लीलए सकामिणीए सह को वि कीलए ॥ वंसत्थ ॥ णंदणवर्ण णरणारिउ भमंति छलपर्यण परोप्परु उल्लवंति । को वि' भणइ कतै वियसिउ असोउ सा भणइ अवस वियसइ असोउ। पिन मिट्टइँ एयइँ सिरिहलाइँ मिट्ठइँ जि होति पिय सिरिहलाई। १३. ५ क फलथणयरिः ख थणफलभरि। १४. ख जोवइ । २ ख अंबरु। ३ क ख लाई। ४ क ग घ होइ । ५ ख तुच्छोवरि। ६ ग घ पाडल। ७ ख तियमणु । १५. १ ग घ फुल्लंधुय । २ ख पारावय। ३ क णरणारिय । ४ क ग घ वयणुः ख छणवयण। ५ ख क वि। ६ ख एयहो। ७ ख जंति । .
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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