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________________ ६७ ७. १२.६] सुदसणचरित घत्ता-इय वयणु सुणेवि अभयहिँ णउ रक्खिज्जइ । कविलाश सगुज्झ रहसंगष्ट अक्खिजइ ॥१०॥ इमाहे कंतस्स गुणा सुणंतिया परोक्खराएण रया अहं थियो । वयंसिए अग्गन जंतु जाणिओ मिसेण तो वाहरिऊण आणिओ॥ सत्थ ।। छुडु रइहरम्मि वणिवरु पइड मई करे धरेवि वुत्तउ मणिहु । पयलंतु मयणसिहि उवसमेहि लइ एक्कवार पहु मइँ रमेहि । हउँ संढु तेण महु कहिउ झत्ति मुक्कउ कराउ अइ हुय विरत्ति'। इय कहिउ गुज्झु कविलाश जाम विहसेवि वुत्तु अभयान ताम । अच्छउ तही देसही तणिय वत्त जहिँ तुहुँ वि छइल्लहिँ मज्में वुत्त । किं ते आलोयणभावसुद्धि ण मुण जे बोल्लिए परहो बुद्धि । हउँ तुज्झ बुद्धि पाएँ लुहेमि परहियण केम णियमइ छुहेमि । सहि पिययमु इह धुत्तीहि तेम वाहिज्जइ पय पाणहिय जेम । घत्ता-वयणेण वि तेण वंचिय तुहुँ हउँ इय मुणमि । गट सलिलसमूह पालिहि बंधणु किं कुणमि ॥११॥ हलि हलि सो जिणधम्मरत्तओ दयावरो दुव्वसणेहिँ' चत्तओ। सरस्सईमंडिउ लद्धसंसओ पराण णारीण सया णउसओ ॥ सत्थ ।। इय सुणेवि अभयहे गिर कविला कुविय बोल्लए । देवि एत्थु जम्मुब्भवपयइ किं को वि मेल्लए ॥ .. . हीण दीण हउँ बंभिणि सुगुणसुबुद्धिवज्जिया। . . अप्पसुओं आहाणउ णिसुणंती ण लज्जिया।। १०. ५ ख रहसेंगया ग घ रहसंगइ। ११. १ ख गुणं । २ ग घ थुणेतिया। ३ ग घ महंतिया। ४ ख ग घ अई। ५ ख हुवउ रत्ति। ६ ख मझ। ७ ख पालोवरिण। ८ ख मुहि जै बोल्लियः ग घ जो बोल्लिए। १२. १ घ दुव्वयणेहिं । २ ग घ बभरिण। ३ क सगुणि । ४ ख अयसउ। .
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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