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________________ ७.६.२] सुदसणचरित घत्ता-पत्तेण णिवेण णाणाविहमहिरुहधर्ण । संजायउ णाई देवागमु णंदणवर्ण ॥॥ महासरं पत्तविसेसभूसियं सुहालयं सक्कइविंदसेवियं'। सुलक्खणालंकरियं सुणाययं णिउ व्व रामु व्व वणं विराइयं ॥वंसत्थ॥ रायहंसगइगमण रंभाजंघोरुयअइकोमल । पवरलयाहररमण कयपसूर्यणियसण णिरु णिम्मल ॥ अलिरोमावलिणिद्ध विततल्लणाहीसुमणोहर । पीणपवरउत्तुंगमाहुलिंगउब्भासियथणहर ॥ वेल्लीभुयसुकुमाल रत्तासोयपत्तकरसुंदर । बिंबीहलअहरदल दाडिमबीयसुदसणाणंदिर ॥ चंपयहुल्लसुणास वियसियइंदीवरदललोयण । पोमाणण सिहिपिच्छकेसबंधजणमयणुक्कोयण ॥ चंदणघुसिणरवण्णवण तिलयंजणसुपसाहण । कप्पूरायरसोह बहुभुयंगसेवियहरिवाहणं ॥ कंचणवंत सुमंड कोइलललियालावसुहासिणि । तरुराइय वर्ण तेत्थु दिट्ठिय राएँ णाइँ विलासिणि ॥ इयगुणेहि परउण्ण कासु ण हियवउ हरइणिरुत्तिय । कामलेह णामेणं पद्धडिया फुडु एस पउत्तिय ॥ घत्ता-रायागमणेण तणुरोमंचिय भासइ । णवकुसुमहलेहि अग्यंजलि व पयासइ ॥८॥ तओ वयंसीहिँ सुखेड्डदक्खहि अणेयभावंतरजुत्तिलक्खहिं। सुलीलए सायरसेणपुत्तिया सहेइ खोणि व्व दिसाहिँ जुत्तिया । वंसत्थ ॥ ८. १ क सक्कउविदसेवियंः ख तोसियं । २ ख सुणाइयं । ३ क पसूण। ४ ख चित्त । ५ ख धरण। ६ ख हरिवाणर। ७ क°वरण । ८ ख वि । ६ क णामः ख णामें। १० क तिण' ६. १ क ख मुखेंदु दक्खहिं । २ ख अखहिं ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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