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________________ 26 थाय अवतार ॥१॥ पूर्व नव्वाणुं पधारियां, तिहां श्रीअरिहंत, ते पगलां ने वंदिये, आणी मन अतिखंत ॥२॥ चौविहारो छ? करी, घेटी पगले जाय, धर्मरल पसायथी, मन वांछित फल थाय ॥३॥ . _ (64) सुखदायी श्रीआदिनाथ, अष्टापद वंदो, चंपापुरी श्री वासुपूज्य, मुख पुनमचंदो 09) गिरनारे श्री नेमनाथ, सुख मुरतरुकंदो, समेतशिखरे पार्श्वनाथ, पूजी मन आणंदो ॥२॥ अपापापुरी श्री वीरजी, कल्याणक शुभठाम, रूपविजय कहे साहिबा, ए पांचे आतम राम ॥३॥ (65) छठ तपकरी व्रतलीये, आदिधर जिनराय, आहारादिक तणोहुओ, प्रभुजीने अंतराय ॥१॥ एकवरसने आंतरेए, श्री श्रेयांस कुमार, प्रभुने करावे पारj, वर्षीतप तीणेसार ॥२॥ वैशाखी त्रीजना दीने, धर्मरलगुणगाय, अखात्रीज नामे घणो, महिमा लोक गवाय ॥३॥ __(66) श्री पार्श्व जिन चैत्यवंदन सकल भविजन चमत्कारी, भारी महीमा जेहनो; निखिल आतम रमाराजीत, नाम जपीये तेहनो, दुष्टाष्टकर्म गंजरी जे, भविक जन मन सुखकरो; नित्य जाप जपीये पाप खपीओ, स्वामिनाथ शंखेश्वरो. १ बहु पुन्य राशि देशकाशि, तत्थ नयरी वणारसी, अश्वसेन राजा राणी वामा, रुपे रति तनु सारिखी; तसकुखे चौद सुपन सूचित, स्वर्गथी प्रभु अवतो. नित्य. २ पोष मासे कृष्ण पक्षे, दशमी दिन प्रभु जनमीया; सुरकुमरी सुरपति भक्तिभावे, मेरु श्रृंगे स्नापिया; प्रभाते पृथ्वीपति प्रमोदे, जन्म महोत्सव अति कर्यो, नित्य जाप जपीये पाप खपीओ, स्वामी नाम शंखधरो. ३ त्रण लोक तरुणी, मन प्रमोदी, तरुण वय जब आवीया, तव मात ताते प्रसन्नचित्ते, भामिनी परणाविआ; कमठ शठ कृत अग्निकुंडे, नाग बळतो उद्धर्यो. नित्य. ४ पोष वदी अकादशी दिने, प्रव्रा जिन आदरे, सुर असुर राजी, भक्ति ताजी, सेवना झाझी करे; काउस्सग्ग करतां देखी कमठे, कीध परिषह आकरो, नित्य जाप जपीये, पाप खपीये, स्वामि नाम शंखेश्वरो. ५ अति तरुणी, मन प्रमाणावआ, कमल
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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