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________________ 17 वाळ्यो तत्काल. १५ वरसीदान देइ करी, ओक कोडी आठ लाख ; सहेसावन संयम लीधो, सहस पुरुष संघात १६ राजुल धरणी ढळी पड्या, उज्जयंत गढ चाल्या; गुफा मांहे रहनेमी मल्यां, राजुले प्रतिबोध्या. १७ स्वामी हाथे संजम लीधो अ, संलेषणा ओक मास; केवल ज्ञाने जळहळ्यां, पाम्या शिवपुर वास. १८ पीयु पहेला मुगते गया, धन धन नेमीकुमार; परण्यां शिवनारी तिहां, सहस पुरुष संघात १६ भणता सविसुख संपजे अ, सुणतां मंगळ माल; हीर विजय वाचक भणे, तस घरे जयजयकार. २० (38) बाळ ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथ, समुद्रविजय विस्तार; शिवादेवीनो लाडलो, राजुल वर भरथार. १ तोरण आव्या नेमजी, पशुडे मांड्यो पोकार; मोटो कोलाहल थयो, नेमजी करे विचार. २ जो परणुं राजुलने, जाय पशुना प्राण; जीवदया मनमां वसी, त्यांथी कीधुं प्रयाण. ३ तोरणथी रथ फेरव्यो, राजुल मूर्च्छित थाय; आंखे आंसुडा वहे, नेमजीने लागे पाय. ४ सोगन आपुं माहरा, वळो पाछा अकवार; निर्दय थई शुं वालमा, कीधो मारो परिहार . ५ झीणी झबुके वीजळी, झरमर वरसे मेह; राजुल चाल्यां साथमां, वैरागे भींजाणी देह. ६ संयम लेई केवळ वर्या अ, मुक्तिपुरीमां जाय; नेम राजुलनी जोडने, ज्ञान नमे सुख दाय. ७ (39) नेमिनाथ बावीशमा, शिवादेवी माय; समुद्रविजय पृथ्वीपति, जे प्रभुना ताय. १ दश धनुषनी देहडी, आयु वरस हजार; शंख लंछन धर स्वामिजी, तजी राजुल नार. २ सौरी पुरी नयरी भलीओ, ब्रह्मचारी भगवान; जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां अविचल ठाण. ३ (40) नायक त्रिभुवन नाथजी, श्री नेमिजिनसार, प्रभुपद प्रेमे पूजीये, गिरुओ गढ गिरनार ||१|| एगिरि उपर एहना, तीन कल्याणक तास, अरिहंत भक्ति अनुसरो, आणी मन उल्लास ॥२॥ जादव कुल दिनकर जिस्यो, ब्रह्मचारी 2.
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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